रूस और चीन के बीच भी रिश्तों की बढ़ती खटाई के बीच शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का 22वां शिखर सम्मेलन 15-16 सितंबर, 2022 को समरकंद, उज्बेकिस्तान में संपन्न होने वाला है। पिछले दो वर्चुअल शिखर सम्मेलनों के बाद यह पहला शिखर सम्मेलन होगा जिसमें सदस्य देशों के नेता सीधे हिस्सा लेंगे। इस बार का एससीओ शिखर सम्मेलन महत्वपूर्ण है। क्योंकि रूस के यूक्रेन पर हमले और चीन-ताइवान तनाव के कारण अमेरिका सहित पूरी दुनिया की निगाहें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात पर होगी। इसके बावजूद भारत के लिए एक बड़ा मौका मध्य एशिया के देशों में अपनी रणनीतिक पहुंच बढ़ाने का भी होगा।
हालांकि रूस के ऐतिहासिक संबंध और चीन की बीआरआई पहल ने मध्य एशिया में किसी तीसरे की पहुंच बढ़ाने की गुंजाइश को काफी हद तक पहले ही कम कर दिया है। बहरहाल तमाम दोस्ती के बावजूद रूस के राष्ट्रपति पुतिन कभी नहीं चाहेंगे कि रूस को इस इलाके में ‘चीन का जूनियर पार्टनर’ माना जाए। इस इलाके में बीजिंग की रुचि का बड़ा कारण ऊर्जा आपूर्ति से जुड़ा है। चीन ने मध्य एशिया की तेल और गैस परियोजनाओं में और विशेष रूप से उज्बेकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है। दूसरी ओर चीन ये भी जाहिर नहीं होने देना चाहता है कि रूस पर अपनी ऊर्जा निर्भरता घटाने के लिए ऐसा कर रहा है। ऐसे में अगर रूस के पास ज्यादा वित्तीय संसाधन होते तो वह मध्य एशिया के विदेशी व्यापार में चीन के प्रभुत्व को रोकने में सक्षम होता।
आने वाले समय में रूस की अर्थव्यवस्था चीन की अर्थव्यवस्था से पीछे रहने की उम्मीद है। जबकि सैन्य क्षेत्र में रूस की ताकत ज्यादा है। इसलिए मध्य एशिया के देश चीन के साथ रक्षा गठबंधन में शामिल होने की कोशिश नहीं करेंगे। फिलहाल ये देखना दिलचस्प होगा कि मध्य एशिया में चीन-रूस संबंध कैसे फलते-फूलते हैं। क्या वे निकट भविष्य में सहयोगी बने रहेंगे या प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे। यह तो समय ही बताएगा। जो भी हो चीन-रूसी धुरी भारत के यूरेशियन इलाके में प्रभाव बढ़ाने के रास्ते में बाधा डाल सकती है।
एससीओ एक विशाल संगठन है। माना जा रहा है कि ईरान को साथ जोड़कर चीन-रूस के कारण एससीओ को एक पश्चिम- विरोधी संगठन के कहा जा सकता है। इससे अमेरिका की चिंता बढ़ना वाजिब है। एक प्रमुख आर्थिक केंद्र बनने की भारत की आकांक्षाओं के लिए मध्य एशिया एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक क्षेत्र है। अगर भारत आर्थिक रूप से एशिया के अन्य हिस्सों के साथ जुड़ता है तो यह भारत के लक्ष्यों को हासिल करने का काम कर सकता है। इससे मध्य एशियाई बाजारों में भारत के प्रभाव के क्षेत्र का विस्तार होगा और विशेष रूप से रूस पर ऊर्जा संसाधनों की निर्भरता घट सकती है।
भारत मध्य एशियाई क्षेत्र में अपने हितों को बढ़ाने और मजबूत करने के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड या गेटवे के रूप में एससीओ का उपयोग करने के अवसर का लाभ उठा सकता है। जब भारत अगले साल एससीओ की अध्यक्षता ग्रहण करेगा तो उसके लिए यह और भी अच्छा होगा। हालांकि इस मामले में मध्य एशिया में चीन का बढ़ता असर एक बड़ी अड़चन है। चीन पर नियंत्रण रखने के लिए भारत को अधिक मुखर और बहुआयामी कूटनीति अपनानी होगी।