चीन-पाकिस्तान के सामने वायुसेना के पास बचेंगे सिर्फ 29 स्क्वाड्रन, 60 स्टील्थ जेट की जरूरत तत्काल… F-35, Su-57 के बीच चुनाव जल्द!

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नई दिल्ली/मॉस्को/वॉशिंगटन: भारत सरकार को अब जल्द फैसला लेना होगा कि उसे पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान अमेरिका से खरीदना चाहिए या फिर रूस से। फैसला इसलिए जल्द लेना होगा क्योंकि चीन के पास दो तरह से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान (J-20, J-35) हैं। जबकि पाकिस्तान, चीन से J-35 खरीदने वाला है। जिसकी डिलीवरी अगले साल तक शुरू होने की संभावना है। पिछले 10 सालों में कम से कम तीन ऐसे मौके आए हैं, जब भारत को युद्ध के हालात में फंसना पड़ा है। दो बार पाकिस्तान के साथ और एक बार चीन के साथ। ऐसे में भारत अब फैसला लेने में देर नहीं कर सकता है, अन्यथा जोखिम के स्तर का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। भारत खुद के पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट प्रोजेक्ट AMCA पर भी काम कर रहा है, लेकिन अभी कम से कम 10 से 12 सालों का वक्त लगेगा। इस बीच रिपोर्ट है कि भारतीय वायुसेना ने भारत सरकार से दो से तीन स्क्वाड्रन यानी करीब 40 से 60 पांचवीं पीढ़ी के विदेशी लड़ाकू विमानों की तात्कालिक खरीद की सिफारिश की है। भारत के रक्षा सचिव आरके सिंह की अध्यक्षता में गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने इस प्रस्ताव को प्राथमिकता देने की सिफारिश भी की है।

यानि भारत किसी स्टील्थ फाइटर जेट को खरीदने के लिए काफी गंभीर हो चुका है। रक्षा मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने बार बार कहा है कि अगले साल तक भारतीय वायुसेना में पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। पिछले दिनों आरके सिंह ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा था कि भारत किसी दोस्त देश से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान खरीदने पर गंभीरत से विचार कर रहा है। लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि वो ‘दोस्त देश’ कौन हो सकता है। यानि अमेरिकी F-35 और रूसी Su-57 के बीच ही भारत को किसी एक फाइटर जेट का चुनाव करना है।

भारत किससे खरीदेगा पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान?
अमेरिका और रूस दोनों ही देशों ने अपने अपने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की पेशकश भारत को की है। अमेरिकी एफ-35 युद्ध में आजमाया स्टीस्थ फाइटर जेट है, जो कई नाटो देशों के पास भी है। रूस ने भारत को एसयू-57 बेचने की पेशकश की है, लेकिन ये विमान युद्ध में आजमाया हुआ नहीं है। भारत पहले रूस के साथ मिलकर FGFA (Fifth Generation Fighter Aircraft) प्रोजेक्ट के तहत एसयू-57 बनाने के प्रोजेक्ट में शामिल था, लेकिन बाद में कमजोर टेक्नोलॉजी और रूस की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने में आनाकानी के चलते प्रोजेक्ट से बाहर निकल आया। लेकिन रूस ने कहा है कि भारत के सामने प्रोजेक्ट में फिर से शामिल होने का विकल्प खुला है। लेकिन दोनों ही लड़ाकू विमानों के साथ दिक्कत है। अमेरिका एफ-35 का टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं करेगा और एफ-35 को लेकर कई शर्तों से भी वो भारत को बांध सकता है, जबकि रूसी एसयू-57 की क्षमता को लेकर कई गंभीर सवाल हैं। सबसे बड़ा शक इसकी स्टील्थ क्षमता को लेकर ही है। इसके अलावा रूस इसका प्रोडक्शन भी नहीं कर पा रहा है।

भारत की दिक्कतें और भी ज्यादा इसलिए बढ़ गई हैं क्योंकि भारतीय वायुसेना ने काफी ज्यादा पुराने हो चुके मिग-21 फाइटर जेट्स को रिटायर कर दिया है। भारत को हर हाल में लड़ाकू विमानों के 42 स्क्वाड्रन चाहिए, लेकिन भारतीय वायुसेना के पास 31 स्क्वाड्रन ही बचे हैं, जो बहुत जल्द कम होकर 29 तक सिमट जाने वाली है। इनमें मिराज-2000 और जगुआर भी शामिल हैं, जो काफी पुराने हो चुके हैं। भारत के वायुसेना प्रमुख कम से कम तीन बार लड़ाकू विमानों की कम होती संख्या को लेकर सार्वजनिक तौर पर सवाल उठा चुके हैं। हालांकि देरी से ही सही, लेकिन तेजस एमके-1 की सप्लाई शुरू होने वाली है, लेकिन सप्लाई की स्पीड कम होगी। AMCA के भारतीय वायुसेना में शामिल होने में कम से कम 10 सालों का वक्त लगेगा, तब तक चीन अपने जे-20 स्टील्थ फाइटर जेट की संख्या और ज्यादा बढ़ा लेगा।

F-35 या Su-57.. एक्सपर्ट किसी भी डील का कर रहे विरोध
हालांकि भारतीय वायुसेना के सामने मुश्किलें काफी ज्यादा हैं और वास्तविक हैं। फिर भी वायुसेना के कई रिटायर्ड अधिकारी और एक्सपर्ट दोनों ही विमानों में से किसी भी विमान को नहीं खरीदने की बात कर रहे हैं। भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी अजय अहलावत सार्वजनिक तौर पर कह रहे हैं कि भारत को अपने फाइटर जेट का तेजी से निर्माण करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि F-35 खरीदकर आप अमेरिका की विदेशी नीति पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। उनका कहना है कि अमेरिका की विदेश नीति स्वार्थी होती है और वहां से कभी भी धोखा मिल सकता है। जबकि एसयू-57 को अजय अहलावत एक स्टील्थ फाइटर जेट ही नहीं मानते हैं। उनका तर्क है कि युद्ध के समय किसी ऐसे देश पर निर्भर होना खतरनाक हो सकता है, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विरोधी गुट का हिस्सा हो, जैसे रूस और चीन की नजदीकी। अहलावत ने मांग की है कि AMCA प्रोजेक्ट को सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के अधीन लाया जाए और इसे राष्ट्रीय महत्व का मिशन घोषित किया जाए। प्रोडेक्ट की निगरानी एक तीन-स्टार एयर मार्शल करे, ताकि प्रोजेक्ट को युद्धस्तर पर पूरा किया जा सके।

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