चीन या नेपाल से गुजरे बिना कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर सकते भारतीय

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केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में बताया है कि दिसंबर 2023 तक भारतीय नागरिक चीन या नेपाल से गुजरे बिना कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर सकते हैं। गडकरी ने बताया है कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के जरिए एक रास्ता बनाया जा रहा है जो सीधे मानसरोवर को जाएगा। उन्होंने कहा है, कि रास्ता के तैयार होने के बाद न सिर्फ समय में कटौती होगी बल्कि मुश्किल रास्ता भी पहले ही तुलना में बेहद आसान होगा। गडकरी के संसद में इस रास्ते को लेकर बताया है, कि वहां रास्ता तैयार करने में मुश्किलें आई हैं, लेकिन हम -5 डिग्री सेल्सियस में भी फाइटर जेट और हेलिकॉप्टर के जरिए मशीन पहुंचाए गए हैं। इस पूरे रास्ते का 85 फीसदी काम पूरा किया जा चुका है। दिसंबर 2023 तक इस रास्ते को पूरा कर लिया जाएगा। बता दें कि कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा हिंदुओं के ही जैन और बौद्ध धर्म के लोगों के लिए भी धार्मिक महत्व रखती है।
कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील तिब्बत के नागरी क्षेत्र में स्थित है। भक्तों का मानना है कि यहां शिव का निवास है। मानसरोवर झील को इसकारण महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि लोगों का मानना है, कि इस झील में देवी-देवता स्नान करते हैं। हर साल लाखों लोग इस पवित्र जगह पहुंचते हैं।
मौजूदा वक्त में नेपाल और चीन के जरिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा में 15-20 दिन लगते हैं। यह यात्रा बेहद कठिन है। यहां सिर्फ स्वस्थ लोग ही यात्रा के लिए आवेदन कर सकते हैं। सिर्फ ऊंचाई ही नहीं भूस्खलन होने के कारण यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। 1998 में प्रसिद्ध ओडिसी नृत्यांगना प्रोतिमा गौरी बेदी सहित 180 से अधिक लोगों की कैलाश मानसरोवर की तीर्थ यात्रा के दौरान भूस्खलन में मौत हो गई थी।
उत्तराखंड से कैलाश मानसरोवर के नए रास्ते को तीन खंड में बांट है। पहला खंड पिथौरागढ़ से तवाघाट तक 107.6 किलोमीटर का है। दूसरा तवाघाट से घाटियाबगढ़ तक 19.5 किलोमीटर सिंगल लेन पर है, तीसरा खंड घाटियाबगढ़ से चीन सीमा पर लिपुलेख दर्रे तक 80 किलोमीटर लंबा है, जिसे सिर्फ पैदल ही पार किया जा सकता है। इस खंड को कवर करने में करीब पांच दिन लगते हैं और यह एक कठिन यात्रा है। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने तवाघाट से घाटियाबगढ़ को अब डबल लेन सड़क में बदल दिया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मई 2021 में इस नई सड़क का उद्घाटन किया था। यह नई सड़क पांच दिन की यात्रा को घटाकर दो दिन की सड़क यात्रा कर देती है जिससे आने-जाने के छह दिनों की बचत होती है। घाटियाबगढ़ से लिपुलेख तक की सड़क अब निर्माणाधीन है और 2023 तक पूरा होने की उम्मीद है। इस सड़क को 2005 में 80.76 करोड़ रुपये की लागत से मंजूरी दी गई थी और 2018 में 439.40 करोड़ रुपये के साथ संशोधित किया गया था।

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