29 मार्च की सुबह जो भी जल्दी घर से बाहर निकला उसे लगा कि शहर और उसके आसपास के क्षेत्र में कोहरा छा गया है। लेकिन कुछ देर बाद ही लोगों की आंखों में जलन होने लगी। जिसके बाद उन्हें समझ में आया कि कोहरे से कभी आंखों में जलन नहीं होती। यह तो धुंआ और उससे उठने वाली खराब हवा है। निश्चित ही इस धुए ने देश की राजधानी दिल्ली की याद दिला दी जहां पर हर साल कुछ इस तरह की स्थिति निर्मित होती है?
सुबह करीब 8 से 10 के बीच लोगों में यह चर्चा का विषय हो गया कि आज सुबह से ही शायद आसमान में कोहरा छाया था या फिर धुआ। लेकिन आंखों में जलन बहुत हो रही थी। जैसे जैसे लोग एक दूसरे को यह परेशानी बताते रहे थे उन्हें पता चला कि 2 दिनों से लगातार रुक रुक कर जिला मुख्यालय से लगे हुए बजरंग घाट डेंजर रोड सहित अन्य स्थान पर जंगल में आग लग रही है।
यही नहीं नगर पालिका परिषद द्वारा भी शहर के भीतर सुबह सफाई के बाद जगह-जगह चौक चौराहों पर कचरा जलाया जा रहा है जिस कारण बीते 2 दिनों से सुबह के समय कोहरे का अनुमान होता और बाद में समझ आता कि यह हवा तो खराब है जिस कारण आंखों में जलन हो रही है।
वन्यजीव विशेषज्ञ ने अभय कोचर बताते हैं कि उनके द्वारा एक दिन पहले भी बजरंग घाट रेंजर कॉलेज क्षेत्र के जंगल में लगी आग की सूचना वन विभाग को दी गई थी। यही नहीं शहर के कुछ स्थानों पर नगर पालिका द्वारा जलाए गए कचरे को ना जलाने के लिए भी नगरपालिका अधिकारियों से बात की गई थी। बावजूद इसके 29 मार्च को भी शहर के भीतर कचरा जलाने का सिलसिला जारी रहा। आग का बड़ा कारण महुआ के सीजन में लोगों द्वारा जंगल के भीतर प्रवेश कर पत्ते जलाना है।
इस दौरान हमें एक दर्शक ने वीडियो भेजा जिसमें जिला मुख्यालय से लगी ग्रामीण क्षेत्रों के जंगलों में आग लगी हुई है और युवा आग बुझाने का प्रयास कर रहे हैं युवाओं ने बताया कि कैसी जंगल में आग लग रही है और उनके द्वारा इसे बुझाने की कोशिश की जा रही है।
शहर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ सिद्धार्थ दुबे बताते हैं कि जंगलों में आग तो अलग बात है लेकिन नगर पालिका द्वारा गर्रा स्थित कचरे का डंप और शहर के भीतर पूरे के पूरे कचरे को जलाया जा रहा है जिस कारण इस तरह की स्थिति निर्मित हो रही है। इस तरह का धुआ मानव शरीर के लिए बहुत अधिक हानिकारक है।
निश्चित ही 28 और 29 मार्च को जिला मुख्यालय के भीतर सुबह के समय आसमान में कोहरा और उसके बाद जहरीली हवा ने एहसास ने दीपावली के दौरान हरियाणा, पंजाब और अन्य राज्यों के किसानों द्वारा चलाई जाने वाली फ्लारी की वजह से दिल्ली को होने वाली परेशानी का एहसास करा दिया। एहसास यह भी करा दिया कि यदि प्रदूषण का लेवल बढ़ा तो बालाघाट के भीतर भी दिल्ली जैसी स्थिति बनते देर नहीं लगेगी।