11 मार्च को 16 दिवसीय गणगौर पूजन का समापन गणगौर विसर्जन के साथ किया गया। नगर के सिद्धेश्वरी मंदिर से होकर नया सराफा होते हुए मेनरोड, काली पुतली चौक, आंबेडकर चौक होते हुए शोभायात्रा मोती उद्यान पहुंची, जहां गणगौर विसर्जन के साथ गणगौर महोत्सव का समापन किया गया।
महिला ज्योति शर्मा ने बताया कि होली के बाद से प्रारंभ होने गणगौर पूजन कन्याओं और विवाहित स्त्रीयों द्वारा किया जाता है। जिसमें मिट्टी के शिव यानी गण (ईसर) एवं माता पार्वती यानी गौर (गवर) बनाकर पूजा की जाती है। 16 दिन तक चलने वाले इस पूजन को लेकर मान्यता है कि शादी के बाद पहला गणगौर पूजन मायके में किया जाता है। इस पूजन का महत्व अविवाहित कन्या के लिए अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिए पूजन करती हैं। इसमें अविवाहित कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पूरे सोलह दिन पूजन करती हैं। मुख्यालय में गणगौर पूजन के अंतिम दिन 11 मार्च को दोपहर 4 बजे ईतवारी गंज स्थित मां सिद्धेश्वरी मंदिर से सर्व राजस्थानी समाज द्वारा शोभायात्रा निकाली गई। यह शोभायात्रा सिद्धेश्वरी मंदिर से प्रारंभ होकर सराफा होते हुए मेन रोड से महावीर चौक, गुजरी चौक, काली पुतली चौक, अंबेडकर चौक से मोती उद्यान पहुंची। नगर में शोभायात्रा का जगह-जगह स्वागत के साथी पुष्पवर्षा भी की गई।
इस शोभायात्रा में झांकियां आकर्षण का केन्द्र रही। वहीं महिलाओं ने राजस्थानी गणगौर गीतों पर जमकर नृत्य किया। इस गणगौर महोत्सव पर निकाली गई शोभायात्रा में पहली बार सर्व राजस्थानी समाज एकजुट दिखाई दिया। जिसमें महेश्वरी समाज, राजस्थानी ब्राह्मण समाज, राजस्थानी सोनी समाज, राजस्थानी खाती के मुख्यालय सहित वारासिवनी, लालबर्रा और अन्य जगहों से बड़ी संख्या में पहुंचे सामाजिक बंधु शामिल रहे।