राफेल लड़ाकू विमानों की संख्या घटाने की तैयारी में भारत, फ्रांस को झटका, नई खरीद नीति से वायुसेना की समस्या का होगा समधान?

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पेरिस/नई दिल्ली: वायुसेना की जरूरतों को देखते हुए भारत अपने MRFA (मल्टी रोल फाइटर एयरक्काफ्ट) प्रोग्राम में बड़ा बदलाव कर सकता है। MRFA प्रोग्राम के तहत भारत ने 114 एडवांस लड़ाकू विमानों को खरीदने की योजना बनाई थी। लेकिन अब जबकि चीन के पास दो तरह के पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं (J-20, J-35) और पाकिस्तान, चीन से J-35 खरीदने वाला है, तो भारत अपनी स्ट्रैटजी में गंभीरता से बदलाव करने की सोच रहा है। भारत ने पहले MRFA प्रोग्राम के लिए टेंडर निकालने का फैसला किया था। लेकिन अब भारत की रणनीति में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय रक्षा मंत्रालय अब टेंडर निकालने की जगह सरकार से सरकार स्तर पर लड़ाकू विमानों को खरीदने के लिए समझौता करने पर विचार कर रहा है। इस बदलाव का मकसद भारतीय वायुसेना की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करते हुए भविष्य के लिए भी एक मजबूत रोडमैप तैयार करना है।

रिपोर्ट के मुताबिक MRFA प्रोग्राम के तहत पहले जो 114 लड़ाकू विमान खरीदे जाने वाले थे, उन्हें अब दो हिस्सों में बांट दिया जाएगा। यानि भारत अब 60 एडवांस राफेल-F4 लड़ाकू विमान फ्रांस से सीधे सरकार से सरकार स्तर पर बातचीत के जरिए खरीदेगा। इसके अलावा भारत बाकी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान खरीदेगा। पिछले दिनों भारतीय रक्षा सचिव आरके सिंह ने कहा था कि भारत किसी दोस्त देश से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान खरीदने के लिए गंभीरता से विचार कर रहा है। हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि वो दोस्त देश कौन सा है?

भारत खरीदेगा राफेल और पांचवीं पीढ़ी के विमान
भारत के दो ही दोस्त देश हैं जो पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाते हैं। अमेरिका एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट ऑपरेट करता है तो रूस एसयू-57 लड़ाकू विमान उड़ाता है। ऐसे में भारत के पास सिर्फ यही दोनों विकल्प हैं। भारत के लिए यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास सिर्फ 31 स्क्वाड्रन हैं, जबकि उसे कम से कम 42 स्क्वाड्रन की हर हाल में जरूरत है। भारत खुद के पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान प्रोजेक्ट AMCA पर भी काम कर रहा है, लेकिन उसके बनने में कम से कम 10 साल लगने वाले हैं और तब तक AMCA के भरोसे बैठना जोखिम भरी रणनीति मानी जा रही थी। इसीलिए भारतीय वायुसेना के लिए कम से कम 2 स्क्वॉर्डन को पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों से लैस करने पर विचार किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन चाहती थी कि भारत कम से कम 110 राफेल F4 खरीदे। आपको बता दें कि राफेल F4, मौजूदा राफेल का नेक्स्ट जेनरेशन है और स्टील्थ क्षमता छोड़कर ये करीब करीब पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के करीब है। संयुक्त अरब अमीरात भी 100 से ज्यादा राफेल F4 खरीदने के लिए फ्रांस से समझौता कर चुका है और अगले साल से डिलीवरी भी शुरू होने वाली है। दूसरी तरफ भारत अब सिर्फ 60 राफेल F4 खरीदने के लिए बात करेगा, जिनमें से ज्यादातर की असेंबली भारत में मेक इन इंडिया के तहत करने पर बात की जा रही है। इसके लिए टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) को हाल ही में रफाल के फ्यूसेलाज निर्माण का कॉन्ट्रैक्ट भी मिला है।

लड़ाकू विमानों के स्वदेशीकरण पर भारत का जोर
ऑपरेशन सिंदूर से साफ हो गया है कि हथियारों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करना कितना ज्यादा जरूरी है। इसलिए भारत का मकसद है कि भारतीय वायुसेना को स्टील्थ टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर को लेकर एडवांस स्तर का अनुभव हासिल हो सके। इससे भविष्य में स्वदेशी AMCA को एयरफोर्स में शामिल करने से पहले भारतीय वायुसेना तकनीकी रूप से ज्यादा तैयार हो पाएगी। इसके अलावा भारतीय रक्षा मंत्रालय अब भारत में ही बने एवियोनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और हथियारों के एकीकरण पर भी जोर दे रहा है, ताकि लागत में कटौती होने के साथ साथ स्वदेशी डिफेंस इंडस्ट्री को नई उड़ान मिले। यानि अगले 2 सालों में भारतीय एयरफोर्स के बेड़े में 60 और एडवांस राफेल F4 लड़ाकू विमान होने के साथ साथ पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान भी होंगे।

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