हाल ही में विद्या बालन के अभिनय ने बनाई गई शेरनी फिल्म में उन्होंने मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले सहित अन्य कुछ जिलों की फॉरेस्ट ऑफिसर का किरदार निभाया। जिसमें उन्हें अत्याधुनिक उपकरण से लैस दिखाया गया। वही यदि वास्तविकता की बात की जाए तो वन विभाग के अधिकारी से लेकर कर्मचारी बीते 25 वर्षों से इन उपकरणों के लिए परेशान हो रहे हैं। गौरतलब रहे कि फिल्म के दौरान पूरे समय विद्या बालन के हाथ में आधुनिक जमाने का वायरलेस सेट दिखाई देता है। जिसके माध्यम से वह तत्काल अपने अधीनस्थ और वरिष्ठ अधिकारियों को जंगल के भीतर घटित हो रही घटना के विषय में जानकारी देती है।
नेशनल पार्क में मिले सेट
वन विभाग द्वारा राष्ट्रीय पार्क के भीतर काम करने वाले अधिकारी कर्मचारियों को तो वायरलेस सेट दे दिया गया है। लेकिन सामान्य वन मंडल के अंतर्गत काम करने वाले प्रदेश के वन कर्मचारी अधिकारियों को वायरलेस नहीं दिया जाए। जिससे उन्हें मैदानी स्तर पर काम करने में बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि बालाघाट जिले के सामान्य जंगलों में टाइगर से लेकर बंद प्राणियों प्राणी ना हो बावजूद इसके वन विभाग द्वारा सामान्य वन मंडल को तवज्जो नहीं दी जा रही है।
वायरलैस से मिलती जल्द मदद
आपको पता है कि पुलिस विभाग को वर्षों पहले वायरलेस सेट दिया गया है। जिसके माध्यम से किसी भी अधिकारी कर्मचारी द्वारा वायरलेस पर दी गई जानकारी पूरी विभाग तक पहुंच जाती है। जिससे उस अधिकारी कर्मचारी की मदद के लिए तत्काल जरूरी कदम उठाए जाते हैं।
मोबाइल नेटवर्क की परेशानी
बालाघाट जिले के भीतर ही अधिकांश क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता। ऐसे में वन कर्मचारी अधिकारियों को भी गश्ती के दौरान वायरलैस सेट की बहुत अधिक जरूरत महसूस होती है। इस विषय पर जब हमने अधिकारियों से चर्चा की तो उन्होंने ऑन कैमरा कुछ नहीं कहा लेकिन इस तरह की परेशानी होने की जानकारी जरूर दी।
शासन स्तर से नहीं ध्यान-दिलीप
वन विभाग के कर्मचारी संगठन के जिला अध्यक्ष दिलीप बांगड़े ने बड़ी बेबाकी से इस बात को रखा कि वन कर्मचारी समय पर सूचना नहीं पहुंचाने की वजह से वन अपराध को समय पर रोकने और अपराधियों को पकडऩे में कई बार मुश्किलें जाती हैं। यही नहीं उन्हें तो उन्होंने तो यह भी बताया कि इस वजह से कई बार माफियाओं का शिकार भी होना पड़ता है। शासन द्वारा योजना बनाए जाने के दौरान कभी भी वन विभाग का ध्यान नहीं रखा जाता नतीजा वर्षों से 1-1 मामले की फाइल भोपाल स्तर पर अटकी हुई रहती है और कर्मचारी अधिकारी परेशान होते रहते हैं।