उद्यानिकी फसल के रूप में बोई जाने वाली मिर्च की फसल इस बार किसानों को दगा दे गई। खराब हुई फसल से लाखों रुपये का नुकसान हो गया। पिछले तीन-चार वर्षों के दौरान जिले में मिर्च की फसल का रकबा तेजी से बढ़ा। दो-तीन वर्ष तक अच्छी पैदावार होने से इस वर्ष करीब तीन हजार एकड़ में मिर्च के पौधे लगाए गए थे। लगाने के बाद से ही बीमारियों की चपेट में आने से पौधे खराब हो गए। कई किसानों ने उखाड़ कर वापस दूसरी बार पौधे लगाए। इसके बावजूद वायरस का अटैक होने से सभी पौधे बीमारी की चपेट में आ गए।
अधिकांश किसानों की फसल खराब हो गई। पैदावार नहीं निकलने से जो लागत लगी थी वह भी नहीं निकल सकी। मसनगांव के किसान हनी भायरे ने बताया कि मिर्च की कई प्रजातियों में वायरस आने से फसल खराब हो गई। कुछ किसान बीच की रोपाई कर पौधे तैयार करते हैं, जिसे किसानों द्वारा खरीद कर ड्रिप और मल्चिंग की सहायता से खेतों में बेड बनाकर लगाया जाता है। खाद-बीज और सेट ट्रीटमेंट की दवाई मिलाकर करीब डेढ़ से दो लाख रुपये एकड़ का खर्चा आया। वायरस आने के बाद पौधे अचानक से खराब होकर सूख गए।
जो मिर्च लगी हुई थी वह भी पर्याप्त मात्रा में नहीं बढ़ सकी। पौधे खराब होने के कारण निकलकर बाहर फेंकना पड़ा। फसल खराब होने से किसानों को लाखों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा, जिसकी भरपाई भी नहीं हो सकी।
पौधे उखाड़कर बोई चना की फसल
मिर्च की फसल खराब होने के बाद कुछ किसानों ने चने की फसल लगाई है, लेकिन अधिकांश किसानों ने खराब मिर्च में लाखों रुपये की दवाइयां डालकर फसल को बचाने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए। क्षेत्र में मसनगांव, बंदी मुहाड़िया, सिराली, डगावाशंकर, रोलगांव, कमताड़ा, नीमगांव आदि कई गांव में किसानों ने परंपरागत खेती से हटकर मिर्च की फसल को प्राथमिकता दी। अच्छी पैदावार लेने के लिए लाखों रुपये की राशि खर्च की, लेकिन परिणाम नहीं निकलने से किसानों को नुकसान उठाना पड़ा।