विपक्ष की दरार और चौड़ी कर गए धनखड़…उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले I.N.D.I.A.में कितने फाड़?

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नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद विपक्षी दलों ने मोदी सरकार को घेरने की शुरुआती कोशिशें शुरू की थीं, लेकिन लगता है कि उनका इस्तीफा इंडिया ब्लॉक में दरार को और चौड़ी करने का कारण बनने लगा है। पिछले साल दिसंबर में जो विपक्ष धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर एकजुट था, वह उनके इस्तीफे को लेकर पूरी तरह से बंटा नजर आ रहा है। जब मॉनसून सत्र शुरू हुआ था, तब लग रहा था कि इंडिया ब्लॉक पहलगाम हमले, बिहार में चुनावी रोल में बदलाव (SIR) को लेकर सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब रहेगा, लेकिन अब उसके सामने उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी उम्मीदवार पर आम सहमति बनाने की जबरदस्त चुनौती आ चुकी है।

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर विपक्ष में मतभेद

जो कांग्रेस उपराष्ट्रपति रहते जगदप धनखड़ की आलोचना करती नहीं थकती थी, उनपर सरकार के हक में पक्षपात का आरोप लगाती रहती थी, उसी के मुख्य प्रवक्ता जयराम रमेश ने उनके इस्तीफे के बाद उनसे अपने फैसले पर ‘राष्ट्रहित’ में फिर से विचार करने तक की अपील कर दी। उन्होंने इसे उनके किसान परिवार से होने की भी दलील दी है। लेकिन, कांग्रेस में ही कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इसे रमेश का निजी विचार बताकर इस विषय से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस की सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) तो रमेश के विचारों से कतई सहमत नहीं हैं और पार्टी सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने यह बात सामने भी रखी है।

टीएमसी, डीएमके ने कांग्रेस-सपा से किया किनारा

लेकिन, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव को भी जयराम की तरह अब पूर्व उपराष्ट्रपति से बहुत सहानुभूति हो गई है। उनके इस्तीफे पर वह बीजेपी की चुप्पी पर सवाल उठा रहे हैं और शक जता रहे हैं कि बहुत कुछ छिपाया जा रहा है। यह वही सपा है, जो पहले राज्यसभा के सभापति की सख्त विरोधी थी उनपर बीजेपी के हक में पक्षपात करने का आरोप लगाती थी। लेकिन, इंडिया ब्लॉक में भी सपा की बेहद करीबी दिखाई देने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने भी इस मामले साइलेंट रहना बेहतर समझा है। जबकि, आम आदमी पार्टी (AAP) खुद को पहले ही इंडिया ब्लॉक से अलग कर चुकी है। इस मामले ताज्जुब की बात ये है कि कांग्रेस की बड़ी सहयोगी डीएमके भी उससे कन्नी काटने लगी है। जहां तक सीपीएम की बात है तो वह इस मामले में न तो खुलकर कांग्रेस के साथ दिख रही है और बीजेपी की आलोचना का मौका भी नहीं छोड़ रही है।

विपक्ष कैसे दे पाएगा उपराष्ट्रपति का संयुक्त उम्मीदवार

ऐसे में इस बंटे हुए विपक्ष के लिए उपराष्ट्रपति पद का संयुक्त उम्मीदवार दे पाना बहुत बड़ी टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। अगले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव है, इसलिए टीएमसी कांग्रेस और लेफ्ट के साथ अभी नहीं भी दिखना चाहती। वहीं पिछली बार उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर मार्गेट अल्वा के नाम पर उससे सहमति नहीं लेने के कांग्रेस के हथकंडे को वह भूली भी नहीं है। एक तरफ चुनाव आयोग ने कह दिया है कि उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर रहा है; और दूसरी तरफ विपक्ष में मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना वाली स्थिति पैदा हो गई।

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