भारत भवन अपने 41वें साल में प्रवेश कर गया। बहिरंग सभागार में इसके स्थापना दिवस कार्यक्रम में 13 फरवरी की शाम से ही तैयार 11 कलाकारों को ढाई घंटे तक अपनी परफॉर्मेंस के लिए इंतजार करना पड़ा। 94 साल के पद्मश्री कलाकार रामसहाय पांडेय भी CM के इंतजार में ठंड में ठिठुरते रहे। दस दिवसीय समारोह का आनंद लेने पहुंचे कला प्रेमियों को अतिथियों के इंतजार में देर से प्रस्तुतियां देखने को मिलीं। विहान ड्रामा के कलाकारों के रंग संगीत से कार्यक्रम का आगाज हुआ। इसके बाद CM के इंतजार में लगातार कार्यक्रम में देरी होती गई।
CM को यहां रात 8 बजकर 10 मिनट पर पद्मश्री और संगीत नाटक एकेडमी सम्मान पाने वाली विभूतियों को सम्मानित करना था, लेकिन वे रात 10 बजकर 47 मिनट पर भारत भवन पहुंचे। 11 बजे सम्मान समारोह हुआ। इस देरी के लिए मुख्यमंत्री ने मंच से ही माफी भी मांगी। इसके बाद भारत भवन के स्थापना दिवस कार्यक्रम में 94 साल के पद्मश्री रामसहाय पांडे ने कमर पर ढोलक बांधकर राई नृत्य किया। वे भारत भवन के उद्घाटन के साक्षी रहे हैं।
CM बोले- कला और परंपरा को आगे बढ़ाएंगे
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, कला, संगीत, नृत्य और उत्सव के बिना जीवन अधूरा है। शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का सुख मनुष्य को सुखी रहने के लिए जरूरी होते हैं। कला और संस्कृति सुखी जीवन के लिए आवश्यक है। धन-दौलत से जो सुख नहीं मिलता है, वह कला और संस्कृति से मिलता है। उन्होंने कलाकारों का स्वागत करते हुए कहा, भारत भवन ने 41 वर्ष में कला-संस्कृति का नया मुकाम कायम किया है। हमने कला ग्राम की स्थापना की है। अगले साल से संचालन शुरू हो जाएगा। कला-परंपरा को आगे बढ़ाएंगे।
भोपाल में भारत भवन, कला और संस्कृति का सबसे पुराना केंद्र है। 13 फरवरी 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत भवन का उद्घाटन किया था। भारत भवन के उद्घाटन के साक्षी रहे कलाकारों ने दैनिक भास्कर से इसकी कहानी साझा की।
पद्मश्री गुंदेचा बोले- हमारी गाड़ी लेट हो गई थी, इंदिरा गांधी ने पूछा कलाकार कहा हैं?
पद्मश्री उमाकांत गुंदेचा ने कहा, जिस दिन इसका उद्घाटन इंदिरा जी ने किया था, उस दिन भी मैंने यहां गाया था। उस समय हम ध्रुपद केंद्र के छात्र थे। मुझसे कहा गया कि स्वस्तिगायन जैसा कुछ गाकर शुरुआत हो। गेट पर मंच बना था। CM हाउस की तरफ रास्ता रोककर कार्यक्रम किया गया था। उस समय सिक्योरिटी के ज्यादा इंतजाम नहीं थे, लेकिन भीड़ ज्यादा थी। जिस गाड़ी से हमें आना था, वो लेट हो गई। जब हम वहां से आए तो इंदिरा जी स्टेज पर आ चुकी थीं। हमारा स्टेज खाली था। उन्होंने पूछा कलाकार कहां हैं? उन्हें बताया गया कि कलाकार आ रहे हैं। हम तानपुरा लेकर दौड़ते-भागते पहुंचे। इंदिरा जी ने देखा तो वे बोलीं कि शायद कलाकार आ गए। …और फिर 5-7 मिनट का स्वस्ति गायन की प्रस्तुति दी।
पद्मश्री पांडेय बोले, समाज के लोग कहते थे तुम ब्राह्मण हो राई मत करो…
रामसहाय पांडे ने बताया कि जब इस भवन का उद्घाटन हुआ था, उस समय हम एक महीने यहां रंग मंडल के साथ रहे थे। लड़कियों को सिखाया था। कुछ बंबई चली गईं, कई लड़कियों की शादी हो गई। इंदिरा जी आई थीं। बाहर उद्घाटन हुआ था, तब हम भी मौजूद थे। आज भी हमें बुलाया गया, ये हम जीवन भर नहीं भूल पाएंगे। हम 12 साल की उम्र से राई कर रहे हैं। अब 90 साल की उम्र हो गई, लेकिन राई का साथ नहीं छूटा।
रामसहाय पांडे आगे बताते हैं कि पद्मश्री मिलने के पहले जब हम राई करते थे, तो समाज के कई लोग कहते थे कि ब्राह्मणों में राई नहीं की जाती। तुम राई करना बंद कर दो। हम उनसे कहते थे कि हम राई बंद कर देंगे, लेकिन आप लोग करीला जाओ, वहां जानकी मैया के यहां की राई बंद करा दो। वहां एक लाख राई होती हैं। आप लोग राई को क्यों बदनाम करते हो। एक लड़की सारी रात नाचती है। उससे ये भी नहीं कहा जाता कि तुम थोड़ा बैठ जाओ। चाय, पानी के लिए भी बैठ गई, तो कहते हैं कि पैसे दिए हैं तुम बैठो मत, नाचती रहो। रात भर वह नाचती है। घूंघट में रहकर नाचने वाली लड़की, जिसका आप मुंह नहीं देख सकते, जिसे आप छू नहीं सकते, उसे आप खराब कहते हो। जमीन पर कंकड, पत्थरों में रात भर नृत्य करने वाली लड़की के राई नृत्य को आप लोग खराब कहते हो। हम उसे खराब नहीं मानते।
पद्मश्री मिलने के बाद सब लोग कहते हैं कि तुमने बुंदेलखंड का नाम रोशन कर दिया। जो लोग पहले मजाक उड़ाते थे, अब वे तारीफ करते हैं। हम दूसरे बच्चों के साथ ही अपने बेटों को भी राई सिखा रहे हैं।