दालों के बढ़ते भाव पर नियंत्रण के बाद केंद्र ने सोमवार को दाल आयातकों से स्टॉक लिमिट हटा ली। मिलर्स एवं थोक विक्रेताओं के लिए भी स्टॉक लिमिट की सीमा बढ़ा दी गई है। इस फैसले से दलहन किसानों को राहत मिलेगी क्योंकि आने वाले दिनों में दालों के भाव बढ़ सकते हैं। सरकार के फैसले के बाद भी दाल मिलर्स, थोक विक्रेताओं, आयातकों को उपभोक्ता मामलों के विभाग के वेब पोर्टल पर स्टॉक की जानकारी देनी होगी।
नियमों में ये बदलाव
- थोक विक्रेता: कुल 200 टन की जगह अब 500 टन तक स्टॉक रखने की अनुमति होगी। हालांकि वे किसी एक दाल का 200 टन से ऊपर स्टॉक नहीं रख सकेंगे।
- दाल मिलर: बीते 6 महीनों में कुल उत्पादन या सालाना उत्पादन क्षमता का 50% (जो ज्यादा हो) का स्टॉक रख सकेंगे। पहले उत्पादन क्षमता का 25% स्टॉक रखने की अनुमति थी।
- आयातक: स्टॉक लिमिट से पूरी तरह छूट मिल गई है। वो जितना मर्जी उतना स्टॉक रख सकेंगे।
आने वाले दिनों में और महंगी हो सकती हैं दालें
केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया कहते हैं कि सरकार की ओर से तय की गई लिमिट किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी। इससे आने वाले दिनों में दालों की कीमतों में 5 से 10% की बढ़ोतरी देखी जा सकती है। हालांकि इससे आम आदमी पर महंगाई की मार पड़ेगी, क्योंकि कोरोना काल में दालें पहले ही काफी महंगी हो चुकी हैं। ज्यादातर दालें 100 रुपए प्रतिकिलो से ऊपर निकल गई हैं।
क्यों महंगी हो रही दालें?
कोरोना काल में लोगों को सब्जियां मिलने में परेशानी हुई। इसके अलावा इस दौरान लोगों ने नॉनवेज से भी दूरी बनाई हैं और प्रोटीन के लिए दाल को सहारा लिया। इस तरह के कारणों के चलते दाम की डिमांड बढ़ी है। इसके अलावा हम दूसरे देशों से दाल का आयात करते हैं लेकिन कोरोना के कारण इसमें कमी आई। इससे भी दाम की कीमतों को सपोर्ट मिला है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक होने के साथ-साथ सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
2 जुलाई को लगाई थी स्टॉक लिमिट
केंद्र सरकार ने दालों जैसी जरूरी वस्तुओं की कीमतों पर काबू पाने के लिए 2 जुलाई 2021 को स्टॉक लिमिट लगाने का फैसला किया था। सरकार ने मूंग को छोड़कर सभी दालों पर 31 अक्टूबर तक स्टॉक लिमिट लगा दी थी। स्टॉक लिमिट लगाने का मतलब यह है कि थोक या खुदरा कारोबारी, मिलर्स और इम्पोटर्स किसी भी दाल या दलहन का सरकार की तरफ से तय लिमिट से ज्यादा का स्टॉक नहीं रख सकते हैं।
2 जुलाई को सरकार ने रिटेल कारोबारियों के लिए 5 टन स्टॉक, थोक कारोबारियों और इम्पोटर्स के लिए 200-200 टन की स्टॉक लिमिट लगाई गई थी। जिसमें किसी एक वैरायटी का स्टॉक 100 टन से ज्यादा नहीं किया जा सकता था। दाल मिलों के लिए कुल सालाना क्षमता का 25 फीसदी से ज्यादा का स्टॉक नहीं रखने का आदेश था।