Ram Mandir Donation: सोमनाथ मंदिर के लिए चंदा जुटाने की कहानी, नेहरू ने इस बात पर जताई थी आपत्ति

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Ram Mandir Donation: अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए देशभर से चंदा जुटाने का अभियान आज से शुरू हो रहा है। श्री राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट और विश्व हिंदू परिषद देश के पांच लाख गांवों के एक करोड़ घरों से चंदा जुटाएंगे। राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने का ये अभियान 15 जनवरी से 27 फरवरी तक चलेगा। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि मंदिर निर्माण के लिए देशभर में इतने विशाल स्तर पर चंदा जुटाने का प्रयास पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए भी देशभर के लोगों ने दिल खोलकर दान किया था। मंदिर निर्माण में राजनीति के दखल को इसलिए कम से कम रखने के बारे में सोचा गया था ताकि मंदिर प्रक्रिया में गठन धार्मिक भावनाओं के अनुरूप हो. विहिप ने सोमनाथ मंदिर के ट्रस्ट की तर्ज़ पर (मोदी और शाह जिसमें बोर्ड सदस्य हैं) ही राम मंदिर के ट्रस्ट बनाए जाने पर ज़ोर दिया था. अब जानने लायक बात ये है कि सोमनाथ ट्रस्ट में क्या खास है, जो राम मंदिर ट्रस्ट के लिए मॉडल के तौर पर देखा गया

ऐसे ही सोमनाथ मंदिर की कहानी

अयोध्या मंदिर की तरह सोमनाथ मंदिर को भी आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया था। साल 1026 ईस्वी में महमूद गजनवी ने सोमनाथ को तहस नहस कर जमकर लूट मचाई थी। बाद में सैकड़ों सालों तक यह मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में रहा। भारत की आजादी के बाद 1947 में सरदार वल्लभभाई पटेल ने जूनागढ़ में सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए एक सभा बुलाई और मंदिर को फिर से निर्माण के लिए घोषणा की थी।

सोमनाथ मंदिर निर्माण के पहले

एक बार भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में सोमनाथ मंदिर पुनर्निर्माण को लेकर लिखा था कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी से आर्शीवाद लेकर सोमनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण का काम शुरू किया था। इस मामले में सरदार पटेल नेहरू, केएम मुंशी और एनवी गाडमिल का भी सहयोग प्राप्त कर चुके थे। तब महात्मा गांधी ने कहा था कि सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए सरकार के बजाय लोगों से मंदिर निर्माण के लिए धन जुटाना चाहिए। बाद में सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट भी बना था, जिसके लेखक व शिक्षाविद् केएम मुंशी भी शामिल थे।

सोमनाथ मंदिर निर्माण के लिए फंडिंग की कहानी

केएम मुंशी ने अपनी किताब में लिखा है कि सोमनाथ पुनरुद्धार की घोषणा के बाद कई लोगों ने दान किया था। जब सरकारी प्रतिनिधि भी दान देने के लिए सामने आए तो महात्मा गांधी ने सुझाव दिया कि इस काम में जनता की भागीदारी होना चाहिए, सरकार की नहीं तो सरदार पटेल ने कई जनप्रतिनिधियों की राशि लौटा दी और उन्हें सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट में दान देने के लिए कहा।

दस्तावेजों के मुताबिक साल 1949 तक फंड में 25 लाख रुपए इकट्ठा हो चुके थे। बाद में 15 मार्च 1950 को ट्रस्ट शुरू हुआ और जाम साहब ने शिलान्यास किया। 1951 में मंदिर का बेस और गर्भगृह तैयार हो चुका था। तब सोमनाथ मंदिर में लिंग स्थापना के लिए पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से आग्रह किया गया था तो पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस पर ऐतराज जताया था। नेहरू ने इसे ‘हिंदू पुनर्जागरण’ बताते हुए कहा था कि देश के शीर्ष नेतृत्व को इससे नहीं जुड़ना चाहिए। हालांकि राष्ट्रपति प्रसाद ने नेहरू के इस ऐतराज को महत्व न देते हुए मंदिर के समारोह में शिरकत की थी।

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