नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमिनल लॉ में एक बड़ा बदलाव किया है। अब अपराध के पीड़ितों और उनके उत्तराधिकारी को भी आरोपियों के बरी होने के खिलाफ अपील करने का अधिकार होगा। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने यह फैसला सुनाया है। पहले, केवल राज्य सरकार या शिकायतकर्ता को ही अपील करने का अधिकार था। हालांकि, अब पीड़ितों और उनके परिवार को भी यह अधिकार मिल गया है।
यह फैसला पीड़ितों को न्याय दिलाने में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध के शिकार लोगों को भी आरोपी की तरह ही अधिकार मिलने चाहिए। अगर किसी आरोपी को कम सजा मिलती है या वह बरी हो जाता है, तो पीड़ित या उसके परिवार वाले इसके खिलाफ अपील कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा
सर्वोच्च अदालत ने सीआरपीसी की धारा 372 का हवाला देते हुए ये टिप्पणी की है। शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर अपील करने वाले पीड़ित की मौत हो जाती है, तो उसके कानूनी वारिस अपील को आगे बढ़ा सकते हैं। जस्टिस नागरत्ना ने 58 पेज के फैसले में कहा, ‘अपराध के शिकार व्यक्ति का अधिकार उस आरोपी के अधिकार के बराबर होना चाहिए जिसे दोषी ठहराया गया है, जो CrPC (Code of Criminal Procedure) की धारा 374 के तहत अपील कर सकता है।’
पहले क्या होता था?
अब तक कोर्ट में आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का हक था। उन्हें सजा के खिलाफ अपील करने का भी पूरा हक था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने अपराध के पीड़ितों को भी कुछ वैसे ही अधिकार दिए हैं। पहले अगर ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट किसी आरोपी को बरी कर देती थी, तो सिर्फ सरकार या शिकायत करने वाला ही अपील कर सकता था।
अब क्या होगा?
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की बेंच ने फैसले में कहा कि अपराध में घायल या नुकसान झेलने वाले लोग और अपराध के शिकार लोगों के कानूनी वारिस भी अब अपील कर सकते हैं। अपराध के पीड़ित का अधिकार उस आरोपी के अधिकार के बराबर होना चाहिए जिसे सजा मिली है। बेंच ने आगे कहा कि हमें लगता है कि पीड़ित को हर तरह का अधिकार है। वह कम सजा होने पर, कम मुआवजा मिलने पर या आरोपी के बरी होने पर भी अपील कर सकता है। यह अधिकार उसे CrPC की धारा 372 के तहत मिला है।
शीर्ष कोर्ट के आदेश की बड़ी बातें
कोर्ट ने पुराने फैसलों और लॉ कमीशन की रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि अपराध के पीड़ितों को अपील करने का अधिकार मिलना चाहिए। इस अधिकार को सीमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने अपराध के पीड़ितों की परिभाषा को भी थोड़ा और बड़ा कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर अपील करने वाले पीड़ित की अपील के दौरान मौत हो जाती है, तो उनके कानूनी वारिस उस अपील को आगे बढ़ा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पीड़ितों को न्याय दिलाने में एक मील का पत्थर साबित होगा। अब पीड़ितों और उनके परिवारों को भी न्याय पाने का एक और मौका मिलेगा।










































