एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल… दूजे के होठों पर देकर अपने गीत, कोई निशानी छोड़ फिर दुनिया से डोल…’, मजरूह सुल्तानपुरी साहब का लिखा, मुकेश की आवाज में गाया और आरडी बर्मन के संगीत से सजा यह गाना, हमने-आपने ना जाने कितनी बार गाया-गुनगुनाया है। आज भी जब कभी जिंदगी में निराशा के बादल छाते हैं, तो फिल्म ‘धरम करम’ का यह गाना बरबस होठों पर आ जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मजरूह साहब ने यह गाना कब, क्यों और किसके लिए लिखा था? आपको जानकर हैरानी होगी कि 1975 में रिलीज इस गाने को उन्होंने जेल की काल कोठरी में 1949 में लिखा था। तब, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने स्वच्छंद मन और मजबूत इरादों वाले मशहूर उर्दू कवि, गीतकार को जेल में बंद कर दिया था। नए-नए आजाद भारत में, यह वह वक्त था जब स्वतंत्र खयालात को सरकार गुलामी की जंजीर पहनाना चाहती थी।
मजरूह साहब 1950 और 1960 के दशक में भारतीय सिनेमाई संगीत की सबसे बड़ी ताकतों में से एक थे। वह प्रगतिशील लेखक आंदोलन में एक महत्वपूर्ण कड़ी थे।अपने छह दशक के करियर में उन्होंने कई संगीत निर्देशकों के साथ काम किया। साल 1965 में फिल्म दोस्ती के गीत ‘चाहूंगा मैं तुझे’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर ने सर्वश्रेष्ठ गीतकार चुना। साल 1993 में उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड (लाइफटाइम अचीवमेंट) से भारत सरकार ने सम्मानित किया। लेकिन ये भी कम दिलचस्प नहीं है कि कभी इसी भारत सरकर ने उन्हें जेल भी भेजा था।
पुलिस में थे मजरूह सुल्तानपुरी के पिता, दिलवाई थी अंग्रेजी तालीम
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में पैदा हुए मजरूह सुल्तानपुरी के पिता असरार उल हसन खान एक मुस्लिम राजपूत थे। पिता 1919-1920 में पुलिस विभाग में थे। उस दौर में असरार उल हसन खान ने अपने बेटे को अंग्रेजी की तालीम दिलवाई थी। साल 1946 में फिल्म ‘शाहजहां’, 1947 में ‘डोली’ और 1949 में आई ‘अंदाज’ से मजरूह साहब का नाम प्रतिष्ठित गीतकारों में शुमार हो चुका था। उनके खयालात वामपंथी झुकाव वाले थे। इस कारण वह सरकार और उनकी सत्ता के विरोध में कविताएं लिखते थे।
नेहरू ने सरकार ने मजरूह सुल्तानपुरी, बलराज साहनी को भेजा जेल
‘एक दिन बिक जाएगा…’ गीत के लिखने की कहानी इसी दौर की है। साल 1949 में बलराज साहनी जैसे दूसरे वामपंथी विचारधारा वाले कलाकारों को सरकार ने जेल में डाल दिया गया था। मजरूह साहब ने भी सत्ता के खिलाफ कविताएं लिखी थीं, बलराज साहनी के साथ उन्हें भी गिरफ्तार किया गया। दरअसल, 1948 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दूसरे सम्मलेन के बाद कम्युनिस्टों ने भारत सरकार के खिलाफ क्रांति करने का फैसला किया था। इसके बाद राष्ट्रव्यापी गिरफ्तारी हुई।
मजरूह सुल्तानपुरी ने ‘हिटलर’ से की थी जवाहर लाल नेहरू की तुलना
मजरूह साहब ने गिरफ्तारी के दिनों में जेल के अंदर कई और कविताएं लिखीं। उनसे माफी मांगने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। लिहाजा, 1951 में उन्हें दो साल जेल की सजा सुनाई गई। एक कविता में तो उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू की तुलना हिटलर से कर दी थी। खैर, जेल जाने के बाद उनके घर की स्थिति दिन-ब-दिन और भी मुश्किल होती जा रही थी। उन्हें मदद की सख्त जरूरत थी। उस जमाने में राज कपूर फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे एक्टर-फिल्ममेकर थे, जो नेकदिली और सबकी मदद करने के लिए जाने जाते थे। राज कपूर को खबर लगी तो वह मजरूह साहब से मिलने जेल पहुंचे।
जेल में राज कपूर ने कहा- मैं आपकी मदद करना चाहता हूं
जेल में मजरूह साहब जैसे धुरंधर लेखक का हाल देख राज कपूर का दिल भर आया। उन्होंने तत्काल उनसे कहा, ‘मैं आपकी मदद करना चाहता हूं।’ इस पर उसूलों के पक्के मजरूह सुल्तानपुरी ने कहा, ‘आप मेरी बस इतनी मदद कर दें कि मुझे कोई काम दिला दें।’ राज कपूर साहब ने झट से कहा, ‘मुझे एक गाना चाहिए, आप एक गाना लिखिए।’
जेल की काल कोठरी में लिखे- एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल
राज कपूर को जिस अंदाज का गाना चाहिए था, मजरूह साहब को उसके लिए कलम चलाने की भी जरूर नहीं पड़ी। दिग्गज कवि ने उन्हें अपनी लिखी ये कविता दी, जो उन्होंने जेल की काल कोठरी में खुद के हाल और मुल्क के हालात पर लिखी थी। इसके बोल थे- एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल…’ समझा जाता है कि मजरूह साहब ने यह लाइनें खुद के ऊपर लिखी थीं। इसमें एक तरह से उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार को नसीहत भी दी थी।
राज कपूर ने मजरूह साहब को गाना लिखने के दिए थे 1000 रुपये
खैर, मजरूह साहब ने यह गाना 1949 में जेल में लिखा था। फिर राज कपूर साहब ने 1975 में रिलीज अपनी फिल्म ‘धरम करम’ में इसका इस्तेमाल किया। यह गाना रिलीज होते ही हर किसी की जुबान पर चढ़ गया। इतना कि फिल्म से ज्यादा इस सुपरहिट गाने की चर्चा होने लगी। राज कपूर ने उस दौर में मजरूह सुल्तानपुरी साहब को इस गाने के लिए 1000 रुपये दिए थे। यह तब बहुत बड़ी रकम थी। लेकिन सब जानते थे राज कपूर ने ऐसा क्यों किया।
मजरूह साहब ने खुद के हाल और हालात पर लिखे अद्भुत बोल
बहरहाल, अब अगली बार, जब आप यह गाना सुनेंगे तो जेल में बैठे उस इंसान को जरूर याद कीजिएगा, जिसके पास बंद दीवारों में सिर्फ दो ही रास्ते थे। एक, या तो निराशा को गले लगा ले। या फिर दूसरा, खुद को यह कहकर आशा से भर सके, ‘अनहोनी पथ में कांटे लाख बिछाए, होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए। ये बिरहा ये दूरी दो पल की मजबूरी, फिर कोई दिलवाला काहे को घबराए। धारा जो बहती है, मिलके रहती है। बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल…’