‘बीजेपी बनाम नोटा’ की लड़ाई वोटर्स को नहीं भाई, धड़ाम से गिरा इंदौर का वोटिंग परसेंटेज, आयोग ने जारी किए अंतिम आंकड़े

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मध्य प्रदेश के इंदौर लोकसभा क्षेत्र में मतदान लगभग 7.5 प्रतिशत घटकर 61.75 प्रतिशत हो गया। 2019 के चुनाव के मुकाबले वोटिंग कम हुई। कांग्रेस उम्मीदवार के अचानक हटने के बाद बदले हालात में इंदौर के लगभग 40 प्रतिशत वोटर्स घर से नहीं निकले। जिला निर्वाचन कार्यालय अधिकारी ने अंतिम आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि इंदौर में 61.75 प्रतिशत वोटर्स ने मतदान में भाग लिया।

कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बाम ने 29 अप्रैल को अपना नामांकन वापस ले लिया था। इसके बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए थे। नतीजतन, कांग्रेस इस निर्वाचन क्षेत्र के 72 साल के इतिहास में पहली बार चुनावी प्रतिस्पर्धा से गायब थी। इसके बाद, कांग्रेस ने स्थानीय मतदाताओं से ‘नोटा’ को चुनने की अपील की। इंदौर में भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद शंकर लालवानी को लगातार दूसरी बार उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर लालवानी समेत कुल 14 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन स्थानीय राजनीतिक समीकरणों के चलते मुख्य मुकाबला भाजपा उम्मीदवार और कांग्रेस समर्थित ‘नोटा’ के इर्द-गिर्द ही रहा।

फिलहाल राजनीतिक विश्लेषक 4 जून को होने वाली मतगणना का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। जिसमें इंदौर सीट पर जीत-हार का अंतर और कांग्रेस समर्थित ‘नोटा’ को मिले वोटों का पता चलेगा। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता आलोक दुबे के मुताबिक इंदौर के मतदाताओं ने कांग्रेस के ‘नोटा’ को पॉजीटिव नहीं लिया। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता नीलाभ शुक्ला ने कहा, ‘इंदौर सीट पर कोई भी उम्मीदवार जीते, लेकिन नोटा एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाएगा।’

2019 के लोकसभा चुनाव में लालवानी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार पंकज संघवी को 5.48 लाख वोटों के अंतर से हराया था। पिछले लोकसभा चुनाव में इंदौर में 69.31 प्रतिशत मतदान हुआ था। उस समय इस सीट पर 5,045 मतदाताओं ने ‘नोटा’ का विकल्प चुना था।

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