गुरुवार को सांसद राहुल गांधी के एक बयान से जेपीसी यानी ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी फिर एक बार चर्चा में है। राहुल का आरोप है कि मोदी और अमित शाह ने लोगों से शेयर खरीदने को कहा लेकिन, 4 जून को सारे शेयर धड़ाम हो गए। इससे 30 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। राहुल ने इल पूरे मामले पर जेपीसी से जांच कराने की मांग की है। इससे पहले भी मोदी सरकार के रहते जेपीसी की मांग की जा चुकी है। आज हम ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के बारे में ही आपको बताते हैं। जेपीसी क्या है और कितनी ताकतवर होती है, सबकुछ बताएंगे।
क्या है जेपीसी?
जेपीसी के बारे में जैसा बताया कि इसे ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी भी कहते हैं। संसद को दरअसल एक ऐसी कमेटी की जरूरत होती है, जिसपर पूरा सदन विश्वास कर सके। किसी बिल, सरकारी गतिविधियों में वित्तीय अनिमितताओं की जांच के लिए जेपीसी का गठन किया जाता है। आपके मन में सवाल होगा कि इसकी जरूरत क्यों है। जांच तो वैसे भी हो सकती है। बता दें कि संसद के पास बहुत सारा काम होता है और समय कम। ऐसे में कोई मामला इस बीच आता है तो उसपर गहराई से विचार नहीं हो पाता। इसलिए ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी का गठन किया जाता है। इसे संयुक्त संसदीय समिति भी कहा जाता है।
जेपीसी का काम क्या होता है?
जेपीसी में दोनों सदनों यानी राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य होते हैं। इस समति का काम संसद के अध्यक्ष या कहें स्पीकर के निर्दश पर होता है और उसके बाद उन्हें रिपोर्ट भी सौंपनी होती है। जेपीसी में सदस्यों की संख्या तय नहीं होती। इसका गठन इस तरह से किया जाता है जिससे सभी राजनीतिक पार्टियों को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिल सके। जेपीसी में राज्यसभा की तुलना में लोकसभा के सदस्य ज्यादा होते हैं। समिति के पास किसी भी माध्यम से सबूत जुटाने का हक होता है। यह समिति किसी भी मामले से जुड़े दस्तावेज की मांग कर सकती है और किसी भी व्यक्ति या संस्था को बुलाकर पूछताछ कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति या संस्था पेश नहीं होती है तो इसे अवमानना का उल्लंघन मानकर जवाब मांगा जा सकता है।