लेब में कोरोना की जांच करवाने आए कुछ लोगों को तलाशने में सरकारी अमले को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अलग-अलग कारणों से नाम, पते या मोबाइल नंबर में आ रही गड़बड़ियों के कारण ऐसा हो रहा है। इस वजह से स्वास्थ्य विभाग या नगर निगम के कर्मियों का समय मरीजों तक पहुंचने में व्यर्थ हो रहा है। अधिकारियों का कहना है कि कुछ मरीजों की गलती तो लेब पर बैठे कुछ आपरेटरों के कारण ऐसा हो रहा है।
खास तौर पर निजी लेब के मामले में ऐसी शिकायतें ज्यादा आ रही हैं। या तो मरीज पहचान छुपाने के डर से अपना सही नाम, पता या मोबाइल नंबर नहीं बताते या फिर निजी लेब के कम्प्यूटर आपरेटरों की गलती से नंबर या पता गलत दर्ज हो जाता है। कोरोना संक्रमण का तेज फैलाव रोकने के लिए सबसे पहले पाजिटिव लोगों तक पहुंचकर उनके इलाज की व्यवस्था प्राथमिकता से करना जरूरी है, लेकिन गलत नाम-पते के कारण इसमें बाधा पैदा होती है। ऐसे मरीजों का कोई सटीक आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन रोजाना कम से कम 40-50 लोगों को ढूंढने के लिए बहुत कसरत करनी पड़ रही है।
कलेक्टर को लिखनी पड़ी चिट्ठी
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इसी परेशानी को कम करने के लिए पिछले दिनों कलेक्टर मनीषसिंह ने स्वास्थ्य विभाग और निजी लेब को चिट्ठी लिखकर आग्रह किया है कि वे टेस्ट कराने आ रहे लोगों के सही नाम, पते और मोबाइल नंबर दर्ज करें। इससे यदि वे पाजिटिव आएंगे, तो उन्हें ढूंढने में परेशानी नहीं होगी और जल्द उनका इलाज शुरू किया जा सकेगा।
गूगल मेप देकर ढूंढवा रहे मरीजों को
नगर निगम के अपर आयुक्त श्रृंगार श्रीवास्तव ने माना कि रोजाना ऐेसे पाजिटिव लोगों की जानकारी मिल रही है, जिनके नाम-पते या फोन नंबर गलत हैं। कभी मरीज का मोबाइल फोन बंद रहता है या डायवर्ट रहता है, तो कभी पता गलत या आधा-अधूरा मिलता है। यही वजह है कि निगमायुक्त प्रतिभा पाल ने निगम के 19 सहायक राजस्व अधिकारियों को भी मरीजों की तलाश में मदद करने की जिम्मेदारी दी है। उन्हें गूगल मेप दिया गया ताकि उसकी मदद से संबंधित व्यक्ति तक पहुंचा जा सके। मरीजों तक पहुंचने के लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था की गई है।










































