शासकीय सेवा में रहते हुए किसी शासकीय कर्मचारी की मृत्यु होने पर उनके परिजनों को शासकीय सेवा में लेने का नियम बनाया गया है। ताकि दिवंगत हुए कर्मचारी के परिवार का पालन पोषण आसानी से हो सके।अनुकंपा नियुक्ति के लिए शासन द्वारा कुछ शर्तें एवं नियम भी लागू किए गए हैं लेकिन कभी-कभी यह शर्तें और नियम परिजनों के ऐसे आड़े आते हैं कि लाख जतन के बावजूद भी उनके दिवंगत के परिजन को अनुकंपा नियुक्ति का लाभ नहीं मिल पाता और वे इसका लाभ के लिए कई सालों तक शासकीय कार्यालय के चक्कर काटते हुए नजर आते हैं।आदिवासी विकास विभाग बालाघाट में एक ऐसा मामला सामने आया हैं जिसमें सड़क दुर्घटना में मृत हुये सहायक अध्यापक की धर्मपत्नी अपने मानसिक कमजोर बच्चे के साथ अनुकम्पा नियुक्ति पाने के लिये एक या दो साल से नहीं बल्कि 12 साल से भटक रही हैं। बावजूद इसके भी विभाग उन्हें नियुक्ति के नाम पर नए-नए नियम,कानून व अपनी मजबूरी बताकर उनकी नियुक्ति नहीं कर पा रहा है। जिस पर अपना एतराज जताते हुए मंगलवार को कलेक्ट्रेट कार्यालय में आयोजित जनसुनवाई में पीड़ित महिला ने ज्ञापन सौंपते हुए उन्हें इंसाफ दिलाए जाने की मांग की। उल्लेखनीय हैं कि पीड़ित महिला कुमेश्वरी कटरे अपने दिव्यांग बच्चे को लेकर जनसुनवाई में पहुंची थी और उसने अपनी परेशानी को मीडिया से व्यक्त किया। बताया कि वह विगत 12 साल से अनुकम्पा नियुक्ति के लिये भटक रही हैं। प्रशासन व शासन से आग्रह हैं कि उसे उसके पति के निधन पश्चात अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की जाये।
पहले डीएड बीएड करने कहा, अब व्यापम पास करने कह रहे है।
पीड़ित महिला के मुताबिक विभाग उसे व्यापम परीक्षा पास करने का सुझाव दे रहा हैं। वह व्यापम परीक्षा पास नहीं कर सकी हैं। फिलहाल में महिला ने गे्रजुएशन कर डीएड कर लिया हैं। पीड़िता अपने लिये अनुकम्पा नियुक्ति मांग रही हैं।इस संबंध में बैहर तहसील के अंतर्गत ग्राम खोलवा की रहने वाली महिला श्रीमती कुमेश्वरी कटरे ने बताया कि उसके पति स्वर्गीय चिमनलाल कटरे आदिवासी विकास विभाग बालाघाट अंतर्गत शासकीय प्राथमिक शाला भटलई संकुल कन्या उमावि बिरसा में सहायक अध्यापक के पद पर पदस्थ थे। स्कूल जाने के दौरान विगत 30 जुलाई 2012 को सड़क दुर्घटना में चिमनलाल कटरे का दुखद निधन हो गया। महिला के दो बच्चे हैं जिसमें एक बालक मानसिक कमजोर हैं। इसी बच्चे को लेकर महिला जनसुनवाई में पहुंची हुई थी। जिसने बताया कि पति की मौत के पश्चात उसके द्वारा आदिवासी विकास विभाग बालाघाट में अनुकंपा नियुक्ति के लिये आवेदन किया हैं। इसके अलावा जनसुनवाई और कलेक्टर से मिलकर अपनी समस्या रखने का प्रयास किया गया हैं। सीएम हेल्पलाईन में भी शिकायत की गई हैं। लेकिन उसे अब तक अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दी गई हैं। श्रीमती कुमेश्वरी कटरे ने बताया कि वह जब भी सहायक आयुक्त कार्यालय बालाघाट में सपंर्क कर रही हैं तो उसे नियमों का हवाला देकर कहा जाता हैं कि आपके पति सहायक अध्यापक थे तो अनुकंपा नियुक्ति की पात्रता नहीं आती हैं। पीड़िता ने बताया कि उसके तरह ही आदिवासी विकास विभाग बालाघाट में एक मामला अनुकंपा नियुक्ति से जुड़ा हैं। जिसमें मेरे पति की मृत्यु के बाद वाले इस प्रकरण में मृतक की पुत्री को 9 साल बाद अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान की गई हैं। हमारा आग्रह हैं कि मुझे भी मेरे पति की अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की जाये। वही चतुर्थ श्रेणी वर्ग में कार्य करने के लिये तैयार हैं।
शासन स्तर पर किया गया पत्राचार-
विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आदिवासी विकास विभाग में लगभग 10 ऐसे प्रकरण सहायक प्राध्यापक से जुड़े हैं जिनकी मृत्यु के पश्चात उनके आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति के लिये आवेदन की प्रक्रिया हुई और वह लंबित हैं। तत्संबंध में आदिवासी विकास विभाग के साथ ही कलेक्टर की ओर से पत्राचार की प्रक्रिया की गई हैं। जबलपुर कमिश्रर के यहां से भी शासन स्तर से पत्राचार करते हुये मार्गदर्शन मांगा गया हैं। एक तरह से लंबी फाईल तैयार कर इन प्रकरणों के निराकरण हेतु आग्रह किया गया हैं। लेकिन शासन स्तर पर कोई निर्णय सामने नहीं आने से ये प्रकरण लंबित हैं। विभाग में नियत नियमावली के अनुसार सहायक अध्यापक के संदर्भ में यही हैं कि उनके समकक्ष ही अर्थात सहायक अध्यापक पद पर ही सीधी भर्ती के माध्यम से अनुकंपा नियुक्ति दी जायेगी। इसके लिये उन्हे डीएड पास होने के साथ व्यापम की ओर से शिक्षक पात्रता परीक्षा भी उत्तीर्ण करनी हैं। ऐसा नहीं होने पर उसके आश्रितों को नियुक्ति नहीं दी जा सकेगी।