Jabalpur News: उपभोक्ता अदालत ने कहा-‘सेवा में कमी की तो क्षतिपूर्ति राशि दें

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जबलपुर,। उपभोक्ता अदालत ने सेवा में कमी पाते हुए क्षतिपूर्ति का आदेश दिया है। आदेश में कहा गया है कि बीमा कंपनी को दो माह के भीतर परिवादी को क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करें या फिर परिवादी से वाहन वापस प्राप्त करें। आयोग के अध्यक्ष केके त्रिपाठी और सदस्य योमेश अग्रवाल ने परिवादी को मानसिक क्लेश के लिए अपेक्षित राशि व वाद व्यय के तीन हजार रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया है। जबलपुर निवासी अनुराग खरे की ओर से दायर परिवाद में कहा गया कि ड्राइविंग के दौरान राहगीर को बचाने के चक्कर में उनका वाहन पलट गया था। जिससे वाहन का इंजिन खराब हो गया। कुछ दूर जाकर वाहन बंद हो गया। वाहन को टोचन कर वर्कशॉप लाया गया। वर्कशॉप में वाहन की मरम्मत अनुमानित कीमत 50 हजार बताई गई। लॉकडाउन के कारण व्यापारिक गतिविधियां बंद हो गई, इसलिए वाहन को रिपेयर नहीं किया जा सका। परिवादी ने बीमा कंपनी को पत्र लिखकर वाहन की मरम्मत के लिए अग्रिम राशि की मांग की। सर्वेयर और लॉस असेसर ने कहा कि वाहन खराबी का कारण ऑयल चेंज नहीं किया जाना है। इसके आधार पर अग्रिम राशि दिए जाने से इनकार कर दिया गया। इसके बाद परिवाद पेश किया गया। सुनवाई के बाद आयोग ने बीमा कंपनी को दो माह के भीतर वाहन की रकम भुगतान करने या फिर वाहन वापस लेने का आदेश दिया है। उपभोक्ता अदालत ने साफ किया कि बीमा जिस मकसद से कराया जाता है, उसकी प्रतिपूर्ति आवश्यक है। लेकिन बीमा कंपनी ने परेशान किया। इससे एक गरीब को हलकान होना पड़ा। उसकी आजीविका का साधन बाधित हुआ। यह रवैया अनुचित था। इससे मूल मंशा पर कुठाराघात हुआ। इस तरह नियम उल्लंघन नहीं होना चाहिए। बीमा इसीलिए कराया जाता है कि समय पर नुकसान की पूर्ति हो सके। यदि इस तरह के केस सामने आएंगे तो कोई बीमा की किश्त क्यों भरेगा?

हाई कोर्ट ने कहा-‘दैनिक वेतन भोगी को फिर से सेवा में लें’

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने नगर परिषद में कार्यरत रहे दैनिक वेतन भोगी कर्मी के हक में राहतकारी आदेश पारित किया। इसके जरिये कहा गया कि चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को पूर्ववत सेवा में लिया जाए। कोर्ट के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता ने रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता की चुनाव ड्यूटी लगाई गई थी। वह ईमानदारी से कार्य करता रहा। इसके बावजूद उसे एक दिसंबर, 2018 से लगातार बिना किसी कारण के अनुपस्थित दर्शाकर नौकरी से निकाल दिया गया। इस संबंध में सात जनवरी, 2019 को आदेश निकाला गया। इससे व्यथित होकर हाई कोर्ट की शरण ली गई है। सवाल उठता है कि जब इस अवधि के बीच में याचिकाकर्ता चुनाव ड्यूटी में लगा था, जिसका उसने प्रमाण-पत्र भी पेश किया, तो फिर उसे अनुपस्थित दर्शाकर नौकरी से कैसे निकाल दिया गया? मुख्य नगर पालिका अधिकारी, नगर परिषद का आदेश मनमाना होने के कारण चुनौती के योग्य है। हाई कोर्ट ने तर्क से सहमत होकर याचिकाकर्ता के हक में आदेश पारित कर दिया। जिसमें साफ किया गया कि सात जनवरी, 2019 को जारी आदेश नियमानुसार न होने के कारण निरस्त किया जाता है। लिहाजा, चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को उसी पद पर उन्हीं सेवा शर्तों के साथ नियुक्ति प्रदान की जाए।

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