नई दिल्ली : मध्य प्रदेश महिला जजों को टर्मिनेट करने के मामले में सुनवाई के सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ा और नाराजगी जताई। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को राज्य में महिला सिविल जजों की सेवाएं समाप्त करने और उनमें से कुछ को बहाल करने से इनकार करने के लिए राज्य हाई कोर्ट की आलोचना की।
‘काश पुरुषों को मासिक धर्म होता’
जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की अगुवाई वाली दो जजों की पीठ ने कहा कि काश पुरुषों को मासिक धर्म होता, तभी वे समझ पाते। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में महिला सिविल जजों की सेवाएं समाप्त करने और उनमें से कुछ को बहाल करने से इनकार करने में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उदासीन रवैये का जिक्र किया।
मामले निपटाने के लिए टारगेट पर सवाल
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि विशेष रूप से महिलाओं के लिए, यदि वे शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित हैं, तो यह मत कहिए कि वे धीमी हैं और उन्हें घर भेज दीजिए। पुरुष जजों और न्यायिक अधिकारियों के लिए भी यही मानदंड होने चाहिए, हम तब देखेंगे, और हम जानते हैं कि क्या होता है। उन्होंने कहा कि आप जिला न्यायपालिका के लिए टारगेट यूनिट (मामले निपटान की) कैसे बना सकते हैं? शीर्ष अदालत ने मामले में आगे की सुनवाई के लिए 12 दिसंबर की तारीख तय की।