पाकिस्तान में भी घरेलू हिंसा विधेयक के खिलाफ एकजुट हुए राजनीतिक दल, समझिए आखिर क्यों हो रहा है इसका विरोध

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इस्लामाबाद: पाकिस्तान में कोरोना महामारी के दौरान महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। देश में बढ़ते घरेलू हिंसा के मामलों को लेकर पाकिस्तान में एक नया विधेयक पेश किया गया है, जिसमें हिंसा के आरोपियों के खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान है। लेकिन इस प्रस्तावित कानून का सियासी हलकों में पहले से ही विरोध होने लगा है, यहां तक कि सत्ताधारी नेता भी इसका विरोध करने में लगे हैं। पीएम इमरान खान के संसदीय मामलों के प्रधानमंत्री के सलाहकार बाबर अवान ने नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर को एक पत्र लिखा है, जिसमें घरेलू हिंसा (रोकथाम और संरक्षण) विधेयक, 2021 की समीक्षा की मांग की गई है।

क्या है प्रस्तावित कानून?

विधेयक में सभी प्रकार की घरेलू हिंसा के खिलाफ कड़े दंडात्मक उपायों का प्रावधान है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इसमें कहा गया है कि घरेलू हिंसा के किसी भी कृत्य के लिए अधिकतम तीन साल की कैद और कम से कम छह महीने की सजा हो सकती है। इसके अलावा, अपराधी पर 20,000 रुपये से लेकर 1,00,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इस विधेयक का उद्देश्य महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और अन्य कमजोर समूहों को घरेलू हिंसा से बचाना है। यह प्रस्तावित विधेयक घरेलू हिंसा के शिकार सभी व्यक्तियों को राहत और पुनर्वास की पेशकश करने का भी प्रयास करता है।

क्या है बिल की स्थिति?

इस साल 19 अप्रैल को मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी द्वारा नेशनल असेंबली में बिल पेश किया गया था और उसी दिन निचले सदन में पारित किया गया था।  जब इसे सीनेट में पेश किया गया, तो विपक्ष ने विधेयक को स्थायी समिति को भेजने पर जोर दिया। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सदस्य और विपक्ष के नेता यूसुफ रजा गिलानी ने तब कहा था कि प्रस्तावित कानून महत्वपूर्ण है, लेकिन स्थायी समिति को इसकी समीक्षा करनी चाहिए। इसके बाद समिति को सीनेट के अध्यक्ष ने बिल पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा। रिपोर्ट ने मसौदे में कई संशोधनों का प्रस्ताव रखा, जिसके बाद बिल को वापस नेशनल असेंबली में भेज दिया गया।

बिल का विरोध कौन कर रहा है और क्यों?

5 जुलाई को कैसर को लिखे गए पत्र में, अवान ने कहा कि विधियेक की परिभाषाओं और बिल की अन्य सामग्री के संबंध में कई चिंताएं है। पत्र में कहा गया है, “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बिल इस्लामिक [निषेध] और जीवन जीने के तरीके का उल्लंघन करता है, जैसा कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 31 में राज्य की जिम्मेदारी में निहित है।”  उन्होंने कहा कि यह सलाह दी जाती है कि विधेयक को सीआईआई के पास भेजा जाए क्योंकि प्रस्तावित कानून को लेकर संविधान “इस्लामिक काउंसिल (सीआईआई) को किसी सदन, प्रांतीय विधानसभा, राष्ट्रपति या राज्यपाल को किसी भी प्रश्न पर सलाह देने का अधिकार देता है।

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