औवैसी की “फैजाबाद” राजनीति, जानें कितना दम

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नई दिल्ली: बंगाल और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में झटके खाने के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने यूपी में जोर आजमाइश की तैयारी कर ली है। पार्टी ने  100 सीटों पर चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया हैं। और इसी कवायद में अयोध्या (जिसे वह फैजाबाद कहते हैं) सहित तीन जिलों के दौरे पर हैं। प्रदेश में उनकी राजनीति किस दिशा में जाएगी यह उन्होंने बाहुबली और जेल में बंद पूर्व बसपा नेता अतीक अहमद को अपनी पार्टी में शामिल कर दिखा दिया है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में ओवैसी फैक्टर किसे नुकसान पहुंचाएगा, यही सबसे बड़ा सवाल है। क्योंकि बिहार के विधानसभा चुनावों (नवंबर 2020) में 5 सीटें जीतकर उन्होंने राजद के मंसूबों को बड़ा झटका दिया था।

क्या खेल कर सकता है ओवैसी फैक्टर

वैसे तो उत्तर प्रदेश में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) पहली बार चुनाव लड़ रही है। लेकिन प्रदेश में मौजूद 20-21 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं की वजह से ओवैसी को बड़ी उम्मीद दिख रही है। इसीलिए लखनऊ में हुई प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने भाजपा पर सीधा  हमला बोला और कहा “हमारा मकसद प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को हराना है। हम चुनाव लड़ेंगे भी और जीतेंगी भी। यह जीत उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की होगी। मुजफ्फरनगर दंगों में जिन नेताओं का नाम आया था, उनके केस वापस ले लिए गए हैं। उन्होंने कहा कि प्रज्ञा और सेंगर जैसे नेता लोकप्रिय हो जाते हैं लेकिन मुख्तार और अतीक अहमद का नाम आता है तो वह बाहुबली कहलाते हैं।” 

साफ है कि ओवैसी मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में हैं। पार्टी को उम्मीद है कि जिस तरह बिहार के सीमांचल में उन्होंने 25 सीटों पर चुनाव लड़कर 5 सीटें हथिया ली थी। वैसा वह उत्तर प्रदेश में भी कर लेंगे। लेकिन पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, उससे उन्हें  बड़ा झटका भी लगा है। इसलिए यह भी बड़ा सवाल है कि क्या उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी और दूसरे दलों  का साथ छोड़ ओवैसी का दामन थामेंगे।

क्या मुसलमानों को रिझा पाएंगे

प्रदेश के मुसलमानों को रिझाने के लिए ओवैसी, सभी तरह की कोशिशें कर रहे हैं। मसलन वह रणनीति के तहत अयोध्या की जगह फैजाबाद का नाम पोस्टर में रखना चाहते हैं। कोशिश यही है कि भले ही बाबरी मस्जिद विवाद खत्म हो चुका है और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। लेकिन  मुस्लिम मतदाताओं के मन में फैजाबाद के जरिए बाबारी मस्जिद की याद ताजा रहे। इसके अलावा उनकी यही कोशिश है कि प्रदेश में वह मुस्मिल बहुल इलाकों पर ही ज्यादा से ज्यादा फोकस करें। इसीलिए वह जब बहराइच गए थे तो बाले मियां की मजार पर गए थे। और बाद में जौनपुर के गुरैनी मदरसे और आजमगढ़ के सरायमीर में बैतुल उलूम मदरसे पहुंचे थे। इस बार के दौरें में उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाकों वाले सुलतानपुर, बाराबंकी और अयोध्या को चुना है।

कितनी कारगर ये कवायदें

लेकिन क्या यह कवायदें मुस्लिम मतादातओं को उनकी तरफ खींच पाएंगी। इस पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शशिकांत पांडे कहते हैं “देखिए ओवैसी की राजनीति बहुत स्पष्ट है, जब चुनाव आते हैं तो वह दिखाई देने लगते हैं। जैसे ही चुनाव खत्म होंगे वह गायब हो जाते हैं। जैसे अभी बंगाल में हो रहा है। वह संगठन बनाने और कार्यकर्ताओं को जोड़ने पर ज्यादा तवज्जों नहीं देते है। किसी भी राज्य में अगर कोई दल चुनाव में असर डालना चाहता है तो उसे कम से कम एक साल पहले जमीनी स्तर पर काम करना होता है। ऐसे में भले ही ओवैसी गिनी-चुनी सीटों पर थोड़े वोट जुटा लें, लेकिन वह प्रदेश की राजनीति में अभी कोई असर डालने में सक्षम नहीं हैं। जहां तक अतीक अहमद के शामिल होने की बात है तो वह भी थोड़ा बहुत ही असर डाल सकते हैं। अतीक कोई जननेता नहीं हैं, जिनके आने से ओवैसी को कोई बड़ा फायदा मिलेगा।”

“एक बात और समझनी होगी कि मुस्लिम मतदाता अब बहुत जागरूक हो चुका है। प्रदेश में 20-21 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। और वह अच्छी तरह समझते हैं कि किसे वोट करने से उनका वोट बेकार नहीं जाएगा। बंगाल का ही उदाहरण ले लीजिए, वहां मुस्लिम मतदाता जानते थे कि भाजपा को हराना है तो केवल तृणमूल कांग्रेस को ही वोट देना है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी पर ही दांव लगाएंगे। बाकी बसपा और थोड़े बहुत कांग्रेस और आरएलडी को वोट देंगे। इसके अलावा प्रदेश में जो जनाधार वाले मुस्लिम नेता है वह पहले से किसी न किसी पार्टी से जुड़े हुए हैं। ऐसे में उनके लिए दूसरी पार्टियों को छोड़कर ओवैसी का साथ देना मुश्किल है। ऐसे में मुझे नहीं लगता है कि ओवैसी बड़ी संख्या में मुस्लिम वोट खींच पाएंगे।”

भागीदारी संकल्प मोर्चा से दूरी ?

ओवैसी ने जब जून 2021 में उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था तो उन्होंने ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाले भागीदारी संकल्प मोर्चे के साथ गठबंधन की बात कही थी। इस समय पार्टी का मोर्चे के साथ गठबंधन भी है लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ समय से दूरियां हैं, उससे लगता है कि आने वाले समय में ओवैसी को अकेले ही चुनाव लड़ना पड़ सकता है। असल में जब से ओम प्रकाश राजभर की भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से मुलाकात हुई है। उस समय से दोनों में दूरिया बढ़ती नजर आई है। साफ है कि 403 विधान सभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में औवैसी के लिए राह आसान नहीं होने वाली है। इसके लिए उन्हें अपने संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ बेहतर उम्मीदवार ढूढ़ना होगा। तभी वह कोई असर दिखा पाएंगे।

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