एनीमिया कम करने में मददगार बनेगा ग्वालियर की महिला डाक्टर का शोध

0

मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित गजराराजा मेडिकल कालेज से संबद्घ कमला राजा अस्पताल के महिला एवं प्रसूति रोग विभाग की एक डाक्टर का शोध कार्य देश में एनीमिया (रक्त की कमी) कम करने की दिशा में अहम योगदान कर सकता है। इसमें गर्भवती व प्रसूताओं में रक्त की कमी दूर करने के लिए परंपरागत आयरन सुक्रोज काम्पलेक्स (आइएससी) की पांच डोज के स्थान पर लौह तत्व के नवीनतम अणु फेरिक कार्बोक्सी माल्टोज (एफसीएम) की सिर्फ एक डोज अधिक प्रभावी पाई गई है। तीन साल तक चले शोध से निकला यह निष्कर्ष देश में सिजेरियन प्रसव के बाद महिलाओं में होने वाली खून की कमी को दूर करने की दिशा में बहुत उपयोगी होगा। एक अध्ययन के मुताबिक ऐसी 60 फीसद महिलाओं में खून की कमी पाई जाती है।

शोध वर्ष 2018 में शुरू किया गया था। शोधकर्ता युवा चिकित्सक डा. शिराली रुनवाल बताती हैं कि शोध में सिजेरियन आपरेशन से बच्चों को जन्म देने वाली 500 प्रसूताओं को शामिल किया गया था। इनमें से 250 प्रसूताओं को आइएससी की डोज दी गई, जबकि शेष 250 को एफसीएम का इंजेक्शन लगाया गया। आइएससी की पांच डोज के बाद भी उतनी तेजी से खून का निर्माण नहीं हुआ जितनी तेजी से एफसीएम की सिर्फ एक डोज लेने वाली महिलाओं में हुआ। इतना ही नहीं, जिन प्रसूताओं को एफसीएम की डोज लगाई गई, उनमें अगले छह से 12 सप्ताह के लिए रक्त निर्माण के सेल भी अधिक विकसित हुए। यह शोध इसी साल पूरा हुआ है। इसके लिए एफसीएम की 250 डोज भी नेशनल हेल्थ मिशन ने उपलब्ध कराई। अब इस शोध को भारत सरकार को भेजा जाना है। गौरतलब है कि डा. शिराली नीट पीजी में पूरे देश में टापर रही हैं। डा. शिराली ने अपना शोध विभागाध्यक्ष डा. वृंदा जोशी और फार्मेकोलाजी की विभागाध्यक्ष डा. सरोज कोठारी के मार्गदर्शन में किया है।

एफसीएएम बनने की प्रक्रिया को करता है तेज

एफसीएम कार्बोहाइड्रेट की एक सेल में बंद रहता है। जब इसे इंजेक्शन के जरिये रक्त में पहुंचाया जाता है तो वह बोनमेरो में पहुंचता है। यहां रक्त बनने की प्रक्रिया को तेज कर देता है। जबकि आइएससी में ऐसी कोई सेल नहीं होती है। शरीर में पहुंचने के बाद यह लौह तत्व के रूप में आ जाता है। इससे शरीर की कोशिकाओं में कुछ नुकसान होता है। इसके गंभीर दुष्प्रभाव के रूप में महिलाओं में लाल चकत्ते, कंपकंपी , बेहोशी, सांस नलिका के सिकुड़ने जैसी समस्याएं आती हैं। गर्भावस्था में दिया जाने वाला फोलिक एसिड महज एक विटामिन है, यह रक्त बनाने में मदद करता है। जबकि एफसीएम माइक्रो न्यूट्रिएंट मिनरल है जो रक्त बढ़ाने के साथ ही आयरन बैंक भी बढ़ाता है।

इस अध्ययन से प्रसूति के बाद अस्पताल में भर्ती होने वाली महिलाओं की संख्या में कमी लाई जा सकेगी। यह मरीज हितैषी भी है। कम लोगों को भर्ती करने की स्थिति और आर्थिक भार में कमी आने से यह शोध स्वास्थ्य ढांचे पर दबाव को कम करने में मददगार साबित होगा

डा.एसएन आयंगर, डीन, गजराराजा मेडिकल कालेज, ग्वालियर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here