मध्य प्रदेश में वर्ष 2010 से 2015 के बीच निजी पैरामेडिकल कालेजों द्वारा किए गए 24 करोड़ रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले ने पूरे सिस्टम पर बड़े प्रश्न खड़े कर दिए हैं। हाई कोर्ट में याचिका के बाद सरकार कठघरे में है। प्रदेश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी लोकायुक्त संगठन ने चौतरफा दबाव के चलते एफआइआर तो दर्ज कर ली, पर जांच कछुआ चाल चल रही है। जांच एजेंसी ने इस मामले 97 एफआइआर दर्ज की है। इनमें ज्यादातर कालेज संचालक हैं। इसमें पहले जनजातीय कार्य विभाग (तत्कालीन आदिम जाति कल्याण विभाग) के अधिकारियों को भी आरोपित बनाया गया था, किंतु बाद में उन्हें क्लीनचिट दे दी गई है।
लोकायुक्त संगठन की ओर से विशेष न्यायालय में पेश किए चालानों में अधिकारियों का नाम नहीं है, जबकि छात्रवृत्ति लेने वालों का सत्यापन और स्वीकृति व भुगतान इसी विभाग के जिला स्तर के अधिकारियों ने किया था। ऐसे में उनकी मिलीभगत की भी आशंका है। पूर्व में जनहित याचिका के जबाब में सरकार ने 2017 में हाई कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त संगठन की तरफ से मामला दर्ज कर जांच की जा रही है। इसके बाद विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी।
छात्रवृत्ति में हुई गड़बड़ी
इस पर न्यायालय ने संतोष व्यक्त करते हुए लोकायुक्त संगठन को जांच कर आगामी कार्रवाई करने को कहा था। तब से पांच वर्ष पूरे हो गए हैं, पर जांच अधूरी है। कालेजों से छात्रवृति वसूलने की जिम्मेदारी जनजातीय कार्य विभाग की थी, पर आठ वर्ष में 45 कालेजों से मात्र चार करोड़ 33 लाख रुपये वसूले गए। बता दें कि भारत सरकार की तरफ से एससी, एसटी और ओबीसी विद्यार्थियों के लिए मिली पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति में यह गड़बड़ी हुई है।