जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। संस्कारधानी जबलपुर की राय बहादुर हीरालाल राय कलावीथिका जबलपुर में कोरोना लॉकडाउन के बाद से बंद थी। अनलॉक के बाद भी काफी समय तक उसके खुलने की बाट जोही गई। लेकिन अब जाकर कलावीथिका में गीत-संगीत के कार्यक्रमों को गति मिलने लगी है। इससे गीत-संगीत के कलाकारों के साथ ही सराहने वालों की भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
प्रत्येक रविवार को यहां बैठने के लिए कुर्सियां कम पड़ जाती हैं। लोग खड़े होकर गीतों का आनंद लेते हैं। इस कलावीथिका में पहले प्रतिदिन कोई न कोई रचनात्मक कार्यक्रम आम था। लेकिन अब पहले की तरह रोज न सही सप्ताह में कुछ दिन तो रचनात्मक कार्यक्रम नजर आ ही रहे हैं। कवि दीपक तिवारी बताते हैं कि उन्होंने दस माह से कलावीथिका में किसी कार्यक्रम क एंकरिंग नहीं की है। कवियों का जमघट लगे लंबा अर्सा गुजर गया है। लेकिन अब उम्मीद है कि शीघ्र ही कलावीथिका में कवियों की महफिल सजेगी। इसी तरह अन्य आयोजनों की कमी भी दूर होगी। यहां स्थित संग्रहालय की दीदार करने भी कलाप्रेमी धीरे-धीरे आने लगे हैं। इस संग्रह में कई नायाब कलाकृतियां शामिल हैं।
कलावीथिका में प्रवेश के साथ ही यहां की सुंदरता मन मोह लेती है। चारों तरफ अतीत की यादों की भरमार है। सामने से पीछे तक एक से बढ़कर एक धरोहरें संजोयी गई हैं। राय बहादुर हीरालाल एक बड़े इतिहासकार थे, जिनकी पुस्तकों में जबलपुर के बारे में कई महत्वपूर्ण तथ्य शुमार हैं। इनका भी संग्रह इस संग्रहालय की विशेषता है। इनका अध्ययन करके न केवल जबलपुर बल्कि आसपास के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है।