तय समय से 5 साल पहले ही इस स्टेशन पर पहुंच जाएगी रेलवे! हजारों करोड़ की होगी बचत, जानिए क्या है मामला

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नई दिल्ली: रेलवे अपनी लेटलतीफी के लिए बदनाम है। ट्रेनों का लेट होना तो आम है लेकिन रेलवे के प्रोजेक्ट्स पूरे होने में भी कई साल की देरी हो जाती है। लेकिन एक मामले में रेलवे ने कमाल कर दिया है। रेलवे इस साल ही अपने नेट जीरो लक्ष्य को हासिल कर लेगा। यह लक्ष्य 2030 तक पूरा होना था, लेकिन रेलवे ने बिजली के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर इसे पहले ही पा लेने की उम्मीद है। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि इस साल ‘स्कोप 1 नेट जीरो’ हासिल कर लेगा। इसका मतलब है कि रेलवे सीधे तौर पर होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को खत्म कर देगा। रेलवे 2.2 मिलियन टन CO2 को कम करके यह लक्ष्य दिसंबर के अंत तक पा लेगा। यह रेलवे के अपने उत्सर्जन से 200,000 टन ज्यादा है।

ET की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक बड़े अधिकारी ने बताया कि आज 90% से ज्यादा ट्रेनें बिजली से चल रही हैं। 2029-30 तक यह आंकड़ा 95% तक पहुंच जाएगा। रेलवे अब थर्मल पावर प्लांट से आने वाली बिजली जैसे अप्रत्यक्ष उत्सर्जन को कम करने की कोशिश कर रहा है। सरकारी अनुमानों के अनुसार रेलवे का कार्बन उत्सर्जन 2023-24 में 3.32 मिलियन टन प्रति वर्ष था। एक अधिकारी ने बताया कि 2024-25 में 90% इलेक्ट्रिक ट्रेनों के चलने से स्कोप 1 कार्बन उत्सर्जन 2.02 mtpa रहा। 2025-26 से 95% इलेक्ट्रिक ट्रेनों के चलने से यह 1.37 mtpa तक आ जाएगा। स्कोप 1 उत्सर्जन का मतलब है कि रेलवे सीधे तौर पर कितना प्रदूषण फैलाता है।

कितनी बिजली की जरूरत

रेलवे इलेक्ट्रिक ट्रेनों पर ध्यान देने के साथ ही सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों से भी बिजली लेने की कोशिश कर रहा है। इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा की भी योजना बनाई जा रही है। अधिकारी ने आगे कहा कि इससे अप्रत्यक्ष उत्सर्जन (स्कोप II और III) को कम करने में मदद मिलेगी। स्कोप II और III उत्सर्जन का मतलब है कि रेलवे बिजली बनाने और दूसरी गतिविधियों से कितना प्रदूषण फैलाता है।

रेलवे को इस दशक के अंत तक ट्रेनों को चलाने के लिए लगभग 10 गीगावाट बिजली की जरूरत होगी। इसमें से 3 गीगावाट बिजली रिन्यूएबल एनर्जी साधनों से ली जाएगी। इसके अलावा, 3 गीगावाट बिजली थर्मल और परमाणु ऊर्जा से 2030 तक ली जाएगी। बाकी 4 गीगावाट बिजली पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों के साथ मिलकर ली जाएगी।

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