नहीं मिल रहा जीआई टैग का फायदा, मुरैना के नाम से धड़ल्‍ले से इंदौर-दिल्‍ली में बिक रही हल्की क्वालिटी की गजक

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मुरैना की गजक को जीआई टैग मिलने के बाद यह गजक का पहला सीजन है, जो लगभग आधा बीत चुका है। लेकिन जीआई टैग से होने वाले फायदों का अंश मात्र भी लाभ अब तक मुरैना के गजक व्यापारी, कारीगर और इसके उद्योग को नहीं मिल सका है। पहले की तरह आज भी दूसरे शहरों में मुरैना के नाम से धड़ल्ले से गजक बिक रही है, जो अब गैर कानूनी है।

गौरतलब है, कि 27 मार्च 2023 को मुरैना की गजक को जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) मिला था। इसी दिन मुरैना की गजक के साथ ही मप्र के रीवा के सुंदरजा आम, छत्तीसगढ़ के धमतरी के नागरी दुबराज चावल को भी केंद्र सरकार ने जीआई टैग दिया गया था। जीआई टैग मिलने के बाद गजक को मुरैना विशेष उत्पाद माना गया है, यानी अब देश-विदेश में कोई अन्य शहर में गजक को मुरैना की गजक या फिर मुरैना के प्रसिद्ध व्यापारियों के नाम से नहीं बेच सकता।

कारोबारियों को नहीं मिल रहा फायदा

सर्दी के दिनों में ग्वालियर, इंदौर, भोपाल से लेकर दिल्ली, जयपुर, गुजरात, मुंबई, कोलकाता तक में गजक की दुकानों पर मुरैना गजक लिखकर उसे ग्राहकों को दिया जा रहा है, जो गलत है। जीआई टैग मिलने के बाद इस पर अंकुश लगना था। इसका सीधा फायदा मुरैना के गजक कारोबार को होता और फिर अन्य शहरों में मुरैना की गजक को ही मुरैना के नाम से बेच सकते थे, इससे जिले में गजक कारोबार में कई गुना बढ़ोतरी होती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया।

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