पर्यटकों को आकर्षित कर रहा MP के कूनो पालपुर नेशनल पार्क का इतिहास

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एशियाटिक लायन (बब्बर शेर) के लिए 16 साल से तैयार कूनो पालपुर नेशनल पार्क अब अपनी दास्तां खुद कह रहा है। पार्क का गौरवशाली इतिहास पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहा है। वे खासकर यहां का किला और सौ साल पहले महाराजा सिंधिया के प्रयासों से दक्षिण अफ्रीका से लाकर यहां बसाए गए बब्बर शेरों के लिए बने हाउसिंग (बाड़े) देखने पहुंच रहे हैं। यह सब उन प्रयासों का प्रतिफल है, जो मध्य प्रदेश टाइगर फाउंडेशन सोसायटी ने किए हैं। सोसायटी ने कूनो पालपुर पर आधारित लघु फिल्म बनाई है, जो इंटरनेट मीडिया पर एक लाख से अधिक प्रकृति-वन्यजीव प्रेमियों को कूनो की दास्तां सुना चुकी है।

कूनो पालपुर भारत सरकार की सिंह परियोजना के बाद बब्बर शेरों को बसाने के लिए जरूर प्रचारित हुआ है, पर यहां की दास्तां सदियों पुरानी है। 27 साल पहले जिस जंगल को गुजरात के गिर अभयारण्य के शेरों के लिए पसंद किया गया, वहां 100 साल (1920 के) पहले शेर रह चुके हैं। ग्वालियर के महाराजा सिंधिया दक्षिण अफ्रीका से शेर लाए थे, जिन्हें इसी जंगल में बाड़े बनाकर बसाया गया था। वन विभाग को जब गुजरात से शेर मिलने की उम्मीदें कम लगने लगीं, तो कूनो में पर्यटन बढ़ाने का इससे अच्छा रास्ता नहीं सूझा और फिर शुरू हुए पर्यटन बढ़ाने के प्रयास। आखिर 27 साल में पार्क के विकास पर 200 करोड़ रुपये जो खर्च किए गए हैं।

अब शेर और पर्यटक नहीं आएंगे, तो कैसे चलेगा, इसलिए लघु फिल्म बनवाकर सोशल मीडिया पर अपलोड किया गया। चुनिंदा टूर आपरेटर को भी भेजा गया। इतिहास में ज्यादा रुचि नई पीढ़ी के लिए कूनो पालपुर अब तक सिर्फ सिंह परियोजना का हिस्सा था, पर अब फिल्म के रूप में सामने आई वहां की गौरवगाथा ने नई पीढ़ी के पर्यटकों को बताया है कि ये वीरों की भूमि है। कभी जंगल की यह भूमि आबाद थी।

455 साल पहले (वर्ष 1666 में) चंद्रवंशी राजा बलभद्र सिंह ने यहां अपनी राजधानी बसाई। यहां कूनो नदी के किनारे आलीशान किला है, जो अभी भी बेहतर स्थिति में है। इस भूमि ने कई लड़ाई देखी हैं। यहां पालपुर गढ़ी और आमेठ का किला भी है। ये स्थान डकैतों के लिए भी जाना जाता है।

पर्यटकों की संख्या बढ़ी

कूनो के इतिहास से परिचित होने के बाद पर्यटकों ने इस रास्ते पर आना भी शुरू कर दिया है। कूनो पालपुर के वनमंडल अधिकारी प्रकाश वर्मा बताते हैं पिछले एक साल में यहां 903 पर्यटक आए थे, पर इस साल शुरूआती तीन महीनों में 200 से ज्यादा पर्यटक आ चुके हैं। ये सुखद संकेत हैं। पर्यटक पार्क का इतिहास, भूगोल तो पूछते ही हैं, ये भी पूछते हैं, यहां शेर आएगा या चीता।

इनका कहना

पिछले सालों की तुलना में पर्यटकों की संख्या में वृद्घि हो रही है। पर्यटकों में पार्क के इतिहास-भूगोल को जानने की भी जिज्ञासा है। – सीएस निनामा, संचालक, सिंह परियोजना कूनो पालपुर

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