बांग्लादेश में छात्रों के नाम पर सेना तो नहीं चाहती सत्ता? आर्मी चीफ का वो आदेश जिसने करा दिया तख्तापलट, जानें

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अंग्रेज जब भारत छोड़कर जाने लगे तो वह पाकिस्तान नाम का एक दर्द देकर गए। भारत के पूर्वी और पश्चिमी दोनों हिस्सों पर यह देश था। लेकिन अलगाव की विचारधारा हमेशा अलगाव ही चाहेगी। 25 साल भी नहीं हुए कि पाकिस्तान भी टूट गया। पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना। बांग्लादेश की आजादी के नायक शेख मुजीबुर रहमान रहे। इसी बांग्लादेश में आज ऐसे हालात हैं कि शेख मुजीब की बेटी और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा है। 15 साल तक सत्ता में रहने वालीं शेख हसीना को 45 मिनट में उनकी ही सेना ने खदेड़ दिया। कहने के लिए छात्र आंदोलन के कारण शेख हसीना की सत्ता गई है। पर यह भी एक सवाल है कि कहीं छात्रों के गुस्से का फायदा उठाकर सेना ने ही खेल कर दिया हो।

जिस तरह पाकिस्तान में सेना सबकुछ कंट्रोल करती है वैसा बांग्लादेश में नहीं है। लेकिन कभी न कभी तो दोनों एक ही हिस्से थे, जिसका असर बना हुआ है। बांग्लादेश में तख्तापलट की पहले भी कोशिशें हो चुकी हैं। सबसे पहला तख्तापलट 1975 में हुआ, जब शेख मुजीबुर रहमान की उनके परिवार के लोगों के साथ हत्या कर दी गई। इसके बाद एक लंबा मिलिट्री राज चला। इसी साल दो और तख्तापलट हुए और जनरल जियाउर्रहमान ने सत्ता कब्जाई। लेकिन जियाउर्रहमान का अंत भी 1981 में तख्तापलट की कोशिश के साथ हुआ। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक चटगांव शहर के एक सरकारी गेस्ट हाउस में उनकी हत्या कर दी गई। हालांकि सेना वफादार थी, जिसने तख्तापलट नहीं होने दिया। लेकिन अगले ही साल सेना बागी हो गई और जियाउर्रहमान के उत्तराधिकारी अब्दुस सत्तार को एक रक्तहीन तख्तापलट के जरिए हटा दिया गया।

हसीना के सामने भी हुए तख्तापलट

साल 2009 में बांग्लादेश में सैन्य तख्तापलट हुआ। सेना प्रमुख ने एक कार्यवाहक सरकार का समर्थन किया जो 2009 तक सत्ता में रही। इसके बाद हसीना पावर में आ गईं। साल 2009 में 25 और 26 फरवरी को बांग्लादेश राइफल्स (BDR) के एक वर्ग ने तख्तापलट का प्रयास किया। यह सेना का नहीं बल्कि सीमा की रक्षा करने वाले एक अर्द्धसैनिक बल का विद्रोह था। विद्रोही सैनिकों ने BDR मुख्यालय पर कब्जा कर डायरेक्टर को मार डाला। इसके अलावा 56 सैन्य अधिकारी और 17 लोग मारे गए। एक दर्जन शहरों में फैला विद्रोह छह दिनों के बाद बातचीत से खत्म हुआ। वहीं 2012 में बांग्लादेश की सेना ने कहा कि उसने सेवानिवृत्त और सेवारत अधिकारियों की ओर से तख्तापलट की कोशिश को नाकाम कर दिया है, जो पूरे देश में शरिया कानून लागू करने के अभियान से प्रेरित था।

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