मध्यप्रदेश की सियासत में हमेशा चर्चा में रहने वाला सिंधिया परिवार आज फिर एक बार सुर्खियों में है। मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार के साथ ही पूरी संभावना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को आज केंद्र सरकार में मंत्री पद दिया जा सकता है। साथ ही यह भी संभावना जताई जा रही है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को पिता माधवराव सिंधिया के समान ही रेल मंत्रालय का प्रभार सौपा जा सकता है।
पिता माधवराव को थी ज्योतिरादित्य की चिंता
दिवंगत माधवराव सिंधिया के अन्य पिता की तरह ही अपने बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के करियर की चिंता सताती थी। माधवराव सिंधिया चाहते थे कि उनके बेटे का लालन-पालन भी एक आम आदमी की तरह ही हो। माधवराव सिंधिया बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि उनके बेटे के साथ राजा-महाराजाओं की तरह व्यवहार हो। यही कारण है कि उन्होंने ज्योतिदित्य को पढ़ाई को लेकर भी काफी अनुशासित रखा और विदेश भी पढ़ाई के लिए भेजा। लेकिन साल 2001 में पिता की मौत के बाद उन्होंने सिसायत में प्रवेश किया और हर भूमिका को जिम्मेदारी के साथ निभाया।
दून स्कूल में पढ़ाई, फिर विदेश रवाना
माधवराव सिंधिया का अपने बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति विशेष स्नेह था। चाहकर भी उन्होंने बेटे को खुद के सिंधिया स्कूल में प्रवेश नहीं दिलाया क्योंकि उन्हें लगता था कि मेरे स्नेह के कारण पास में रहने से बेटे की पढ़ाई प्रभावित होगी। इसलिए उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रवेश दून स्कूल में कराया था। पिता माधवराव सिंधिया समय-समय पर उन्हें सियासी सीख भी देते रहते थे, लेकिन जीते-जी उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजनीति से दूर ही रखा। विमान हादसे में मौत के बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति में प्रवेश किया था।
अर्जुनसिंह के परिवार के 36 का आंकड़ा
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का संबंध भी राजपरिवार से है। अर्जुन सिंह के परिवार और सिंधिया परिवार से हमेशा 36 का आंकड़ा रहा है, लेकिन पिता की मौत के बाद जब ज्योतिरादित्य ने 2001 में जब कांग्रेस की सदस्यता ली, तब कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को माधवराव की ऐतिहासिक कलम भेंट की थी। ये वही कलम थी जिससे साल 1979 में माधवराव ने कांग्रेस की सदस्यता फॉर्म पर हस्ताक्षर किए थे। कांग्रेस में ज्वाइन करने से पहले माधवराव सिंधिया जनसंघ से चुनाव लड़े थे, लेकिन अपनी मां राजमाता सिंधिया के अनबन के चलते उन्होंने तब कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी और अंतिम सांस तक कांग्रेस में ही रहे थे।