दर्द, पीड़ा, रुदन, आंसू…। किसी की बेटी गई, किसी का बेटा, किसी का पति तो किसी की पत्नी, फिर भी मानवता का फर्ज नहीं भूले। बेलेश्वर महादेव मंदिर की बावड़ी के हादसे में अपनों को खोने का दुख तो जीवनभर नहीं भुलाया जा सकेगा, लेकिन दुनिया से जाने वालों की आंखें किसी जरूरतमंद की दुनिया में उजाला भर दें, इससे बड़ी बात और क्या होगी। वे तो नहीं दिखाई देंगे, लेकिन उनकी आंखों से जरूरतमंद देख पाएंगे। उनकी देह तो पंचतत्व में विलीन हो जाएगी, लेकिन त्वचा किसी की देह का आवरण बन जाएगी।बावड़ी से निकाले गए शव जब एमवाय अस्पताल पहुंचाए गए तो वहां भी दर्द और आंसुओं का सैलाब बह रहा था। अंगदान कराने वाली संस्था के प्रतिनिधियों ने याद दिलाया तो डबडबाईं आंखों और डूबते मन के बीच मानवता जागृत हुई। मृत लोगों के स्वजनों ने अपनों की आंखें और त्वचा दान करने की सहमति दे दी। इस तरह आठ मृतकों की आंखें और इन्हीं में से तीन की त्वचा भी ली गई। अब दक्षा पटेल, इंद्र कुमार, भूमिका खानचंदानी, लक्ष्मी पटेल, मधु भम्मानी, जयंतीबाई, भारती कुकरेजा और कनक पटेल की आंखें और इंद्र कुमार, भूमिका और जयंतीबाई की त्वचा किसी जरूरतमंद के काम आएगी।