जिला अस्पताल में कही नही मिल रही ई अस्पताल की सुविधा

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500 बेड के जिला अस्पताल को भले ही ई- अस्पताल घोषित कर दिया गया हो. लेकिन इस अस्पताल में आज भी ई- अस्पताल जैसी सुविधाएं नहीं दी जा रही है। जहां ई- अस्पताल के लिए लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी यहां की व्यवस्थाएं पुराने ढर्रे पर चल रही है। आलम यह है कि यहां पहुंचने वाले मरीज और उनके परिजनों को ओपीडी चिट्ठी बनवाने के लिए लंबी-लंबी कतारे लगानी पड़ रही है। आपको बताएं कि जिला अस्पताल में मरीजों को लंबी कतार से बचने और बिना किसी रूकावट के उन्हें चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए टोकन पर्ची मशीन की व्यवस्था की गई थी। लाखों रुपए खर्च कर करीब 6 महा पूर्व लगाई गई थी। लेकिन टोकन नंबर पर्ची मशीन की यह व्यवस्था, शुरू होने के पूर्व ही बंद हो गई है और मरीज और उनके परिजनो को पर्ची बनवाने के लिए लंबी कतारे लगाने के लिए मजबूर होंना पड़ रहा है। हैरत की बात तो यह है कि लाखों रुपए खर्च कर जो मशीन जिला अस्पताल में लगाई गई है उसका आज तक उपयोग नहीं हो सका है। जहां जन जागरूकता की कमी के चलते मरीज और उनके परिजनों की बात तो दूर, वहां के नर्सिंग स्टाफ और चिकित्सकों को भी मशीन से टोकन पर्ची निकालने का नॉलेज नहीं है। कुल मिलाकर कहा जाए तो टोकन मशीन सहित अन्य कार्य भले ही ऑनलाइन कर जिला अस्पताल को ई- अस्पताल घोषित कर दिया गया हो लेकिन यहां ई- अस्पताल जैसी व्यवस्थाएं आज भी नही बन पायी है।

कुछ ऐसी बनाई गई थी टोकन व्यवस्थाएं
जिला अस्पताल को ई-अस्पताल बनाने और अन्य सुविधाओं में इजाफा करने के लिए लाखों रुपए खर्च कर आउटसोर्स के माध्यम से जिला अस्पताल में टोकन पर्ची मशीन लगाई गई थी ।ताकि पर्ची बनवाने और चिकित्सको के पास नंबर लगाने के लिए मरीज और उनके परिजनों को किसी भी प्रकार की परेशानी न उठानी पड़े। जहां सिस्टम कुछ इस प्रकार बनाया गया था कि मरीज या उनके परिजन इस मशीन में जाकर रजिस्ट्रेशन की बटन दबाकर एक पर टोकन पर्ची लेंगे, फिर पर्ची काउंटर के कर्मचारी नंबर के आधार पर एक-एक मरीज को बुलाकर ओपीडी पर्ची बनाएंगे। वहीं मरीज से उसका मर्ज भी पूछ कर संबंधित चिकित्सक व कक्ष की एंट्री करेंगे वह पर्ची लेकर मरीज या उनके परिजन आराम से बैठ जाएंगे और हाल में लगी टीवी में अपने टोकन नंबर का इंतजार करेंगे। जैसे ही उनका टोकन नंबर टीवी पर प्रदर्शित होगा वैसे ही उन्हें ज्ञात हो जाएगा कि उन्हें किसी कमरे में जाकर किसी चिकित्सक से अपना उपचार करना है इस प्रक्रिया पर अपनाकर जिला अस्पताल में लगने वाली भीड़ को काम करने,एंव मरीज और उनके परिजनों को राहत पहुंचाने का दावा किया जा रहा था। लेकिन जन जागरूकता की कमी के चलते इस मशीन का उपयोग करना किसी को आता ही नहीं है। वही मशीन का उपयोग करने के लिए संबंधित स्टाफ को भी ट्रेनिंग नहीं दी गई है। जिसके चलते जिला अस्पताल की यह व्यवस्था वर्षों से पुराने ढर्रे पर चल रही है जो अभी जारी है।

ओपीडी का रिकॉर्ड तक नहीं हो रहा मेंटेनेंस
बताया जा रहा है कि ई-अस्पताल घोषित करने के बाद जिला अस्पताल में ओपीडी की रजिस्टर व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया था।क्योंकि रोजाना कितने मरीज आ रहे हैं कितनी ओपीडी पर्ची बना रही है इसका पूरा रिकॉर्ड रखने के लिए टोकन पर्ची मशीन लगाई गई थी। लेकिन यह व्यवस्था शुरू होने के पहले ही बंद हो गई। जिसके चलते जिला अस्पताल में ओपीडी का ऑनलाइन रिकॉर्ड भी मौजूद नहीं है।

सहायता केंद्र वाले भी नहीं कर रहे सहायता
जिला अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को भटकने से बचने और उनका समय पर उपचार करने के लिए जिला अस्पताल में टोकन मशीन के ठीक पीछे एक सहायता केंद्र भी बनाया गया है। जिसके ठीक सामने यह टोकन पर्ची मशीन रखी गई है।शुक्रवार को जिला अस्पताल का औचक निरीक्षण करने पर यह बात सामने आई की कुछ जागरूक लोग टोकन पर्ची लेने के लिए मशीन के पास तो पहुंचे लेकिन मशीन बंद होने के चलते उन्हें टोकन पर्ची नहीं मिली। वहीं सहायता केंद्र में भी कर्मचारी उक्त टोकन पर्ची मशीन से टोकन निकालने में नाकाम नजर आए।

मशीन तो लगा दी, पर ट्रेनिंग देना भूल गए
बताया जा रहा है कि यह टोकन पर्ची मशीन आउटसोर्स के माध्यम से जिला अस्पताल में लगाई गई है जिसका मेंटेनेंस का कार्य भी आउटसोर्स कर्मचारी के पास है। जहां ठेके के मुताबिक ठेकेदार आउटसोर्स कंपनी ने जिला अस्पताल में मशीन तो लगा दी। लेकिन यहां मशीन कैसे ऑपरेट होगी इसमें टोकन रोल कैसे फिट किया जाएगा और मशीन ऑपरेट संबंधित अन्य कार्य कैसे करना है इसकी किसी को जानकारी नहीं है। हैरत की बात तो यहां है कि जिस कंपनी ने यहां मशीन लगाई है।उसे ऑपरेट करने की ट्रेनिंग भी जिला अस्पताल के स्टाफ को नहीं दी गई है। जिसके चलते आम लोगों के साथ-साथ यहां का स्टाफ औऱ अन्य चिकित्सक भी इस मशीन का उपयोग नहीं कर रहे हैं।

तो क्या दिखावे के लिए खर्च किए गए थे लाखों रुपए
इस पूरे मामले पर गौर करने के बाद अब जहां में कई सवाल उठने लगे हैं। सवाल यह है कि जब लाखों रुपए खर्च कर टोकन मशीन लगाई गई थी तो फिर इसका उपयोग क्यों नहीं हो रहा है। सवाल यह भी है कि जिला अस्पताल को ई-अस्पताल घोषित करने के बाद भी यहां टोकन सिस्टम अब तक लागू क्यों नहीं किया जा रहा है ।सवाल यह भी है कि संबंधित स्टाफ को मशीन ऑपरेट करने की ट्रेनिंग क्यों नहीं दी गई और सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पुराने ढर्रे पर ही सिस्टम को चलना था, तो फिर लाखों रुपए खर्च कर टोकन सिस्टम मशीन आखिर क्यों लगाई गई थी। जब सुविधा ही नहीं मिल रही है तो फिर जिला अस्पताल को ई-अस्पताल कैसे और क्यों घोषित किया गया है। यहां का मंजर देखकर ऐसा लगता है कि जिला अस्पताल को महज कागजों में ही ई अस्पताल घोषित किया गया है। वहीं ई अस्पताल के नाम पर यहां मरीज और उनके परिजनों के लिए मशीन सिर्फ और सिर्फ दिखावे के लिए लगाई गई है । यही सभी सवाल जिला अस्पताल प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं उठाते हैं

ट्रेनिंग स्टाफ भी लाइन लगाकर ले रहे पर्ची
जिला अस्पताल का मुआयना करने पर यह बात भी देखने को मिली कि टोकन पर्ची व्यवस्था होने के बावजूद भी इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है वही जनजागरूकता की कमी और ट्रेनिंग ना मिलने के चलते ट्रेनिंग नर्सरी भी जिला अस्पताल में पर्ची बनवाने के लिए लंबी लाइन पर्ची काउंटर पर लगी नजर आती है। यदि इन्हें ट्रेनिंग मिल जाती और मशीन शुरू रहती तो निश्चित तौर पर आम जनों के साथ-साथ स्टाफ को भी सुविधा मिलती है। वहीं कार्य आसानी से पूरे हो जाते। लेकिन संबंधित अधिकारियों के उदासीन रवैया के चलते यहां की व्यवस्था जस की तस बनी हुई है। वही बालाघाट का सबसे बड़ा अस्पताल आज भी ई-अस्पताल के नाम पर सरकारी कागजों की शोभा बढा रहा है।

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