चीन में एक जगह है थियानमेन चौक। थियानमेन का मतलब होता है-स्वर्गिक शांति का दरवाजा। लेकिन यही थियानमेन चौक एक बड़े नरसंहार की कहानी बयां करता है। इस जगह को अब किले जैसा बना दिया गया है, मगर 4 जून, 1989 को यहां एक खूनी नरसंहार हुआ था। जिसमें लोकतंत्र बहाली के समर्थन में जुटे लाखों छात्रों पर चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने टैंक चढ़ा दिए थे। माना जाता है कि इस नरसंहार में कम से कम 10 हजार छात्र कुचलकर मार डाले गए थे। एशिया में ऐसे कुछ छात्र आंदोलनों की कहानी जानते हैं, जिसमें छात्रों ने अपने प्रदर्शनों से सत्ता को हिलाकर रख दिया था। चीन का थियानमेन चौक आंदोलन, भारत में जेपी आंदोलन और ताइवान की सनफ्लावर क्रांति की कहानियों के बारे में जानते हैं।
नए बदलाव के चक्कर में बढ़ा भ्रष्टाचार तो होने लगे प्रदर्शन
साल 1980 के शुरुआती दशक के दौर में चीन कई बदलावों से होकर गुजर रहा था, जिनमें निजी कंपनियों और विदेशी निवेश को अपनाए जाने की बात उठ रही थी। तत्कालीन चीनी नेता डेंग श्याओपिंग को उम्मीद थी कि इन कदमों से चीनी अर्थव्यवस्था को बल मिलने के साथ ही लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार आएगा। लेकिन इस सोच के ठीक उल्टा हुआ। इन कदमों के साथ भ्रष्टाचार बढ़ने के मामले सामने आए। उसी वक्त आम लोगों के बीच राजनीतिक स्वतंत्रता से लेकर खुलकर बातचीत होने की आकांक्षाओं का जन्म हुआ। ऐसे ही दौर में छात्र लोकतांत्रिक बदलाव की चाहत को लेकर विरोध प्रदर्शन करने लगे थे।
एक नेता की हत्या के बाद थियानमेन चौक पर जुटने लगे छात्र
साल 1989 में राजनीतिक स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाए जाने की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। इसी दौरान चीन के एक बड़े चीनी नेता हू याओबैंग की हत्या हो गई, जो चीन में आर्थिक और राजनीतिक बदलावों की हिमायती थे। 1989 के अप्रैल में याओबैंग की अंत्येष्टि में लाखों लोग शामिल हुए, जिन्होंने सेंसरशिप कम करने से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी की मांग को उठाया। इसी के बाद से चीन की राजधानी बीजिंग के थियानमेन स्क्वायर में चीनी छात्र जुटने लगे थे। कुछ अनुमानों में कहा गया है कि इस चौराहे पर 10 लाख छात्र जुट गए थे।