जरा सोचिए, एक शख्स को डकैती के झूठे आरोप में फंसा दिया जाए। सबूत नहीं हैं, फिर भी उसे ‘हिस्ट्रीशीटर’ घोषित कर दिया जाए। पुलिसवाले रात-रात भर उसके घर के दरवाजे पर दस्तक देते रहें। खड़क सिंह के साथ ऐसा ही हुआ था। 1962 में खड़क सिंह ने देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने आधी रात को दस्तक देने के नियम को तो गलत माना, लेकिन निजता के अधिकार को लेकर कुछ खास नहीं कहा।
कई दशक बीत गए। अब तकनीक ने बहुत तरक्की कर ली है। कुछ समय पहले दिल्ली में नाइजीरिया के नागरिक फ्रैंक विटस को जमानत पर छोड़ा गया था, लेकिन शर्त यह थी कि उसे अपनी लोकेशन पुलिस को बतानी होगी। मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने कहा कि यह गलत है। किसी को भी लगातार ट्रैक नहीं किया जा सकता। यह निजता के अधिकार का हनन है।
ये फैसले क्यों महत्वपूर्ण: ये फैसले हमें बताते हैं कि हमारी निजी जिंदगी हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है और सरकार या पुलिस इसे छीन नहीं सकती। आज के दौर में, तकनीक की मदद से हमारी हर गतिविधि पर नजर रखना बहुत आसान हो गया है। इन फैसलों से हमें यह याद दिलाया जाता है कि तकनीक का इस्तेमाल करते हुए भी हमें अपने अधिकारों का ध्यान रखना चाहिए।