प्रदेश में डीएपी खाद का संकट मुरैना और भिंड जिले में ही ज्यादा है। प्रशासन दावा कर रहा है कि पर्याप्त मात्रा में खाद आ रही है, लेकिन हकीकत यह है कि खाद के लिए किसानों में मारामारी मची है। जिस किसान को 10 बोरे डीएपी की जरूरत है, उसे दो बोरे मिल रहे हैं। डीएपी खाद के इस संकट के पीछे दो प्रमुख कारण बताया जाता है। पहला, मांग की तुलना में मात्र 40 फीसद खाद जिले को मिलना। दूसरा, सरसों पर आई महंगाई। मुरैना व भिंड में सरसों की फसल बहुतायत में होती है। अभी सरसों की बोवनी का समय है, इसीलिए खाद के लिए किसान टूट पड़े हैं। इस कारण वितरण व्यवस्था चरमरा गई है।
बता दें कि सरसों पिछले 4000 से 4200 रुपये क्विंटल तक बिकी थी। इस साल सरसों के दाम 8300 से 8500 रुपये क्विंटल तक पहुंच गए हैं। इसलिए मुरैना में अधिकतर किसान सरसों की फसल कर रहे हैं। पिछले साल मुरैना में एक लाख 52 हजार हेक्टेयर में सरसों की फसल हुई थी। कृषि विभाग ने इस बार लक्ष्य बढ़ाकर एक लाख 67 हजार हेक्टेयर कर दिया है।
अगस्त में आई बाढ़ के कारण 13 हजार 800 हेक्टेयर में किसानों की बाजरा की फसल बर्बाद हुई थी, यह किसान भी बाढ़ प्रभावित खेतों में सरसों की फसल कर रहे हैं। इस कारण सरसों का रकबा इस साल बढ़ गया है। सरसों की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ने से गेहूं का रकबा 99 हजार हेक्टेयर से घटाकर 85 हजार हेक्टेयर कर दिया गया है। ऐसा ही हाल भिंड जिले के हैं।
मांग की तुलना में 40 फीसद मिली खाद
सरसों की फसल की बोवनी का समय 10 से 30 अक्टूबर तक रहता है। जिला प्रशासन व कृषि विभाग ने सरकार को मुरैना के लिए 24500 टन डीएपी खाद की मांग भेजी गई थी। इसमें से अब तक मात्र नौ हजार 38 टन खाद ही मिली है। जिले के लिए यूरिया की मांग 54000 मीट्रिक टन भेजी है, जिसमें से केवल नौ हजार 865 टन यूरिया खाद ही मुरैना को मिली है।