दिल्ली में G20 समिट में एक अहम घोषणा हुई। समिट में इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाने की घोषणा की गई। इस कॉरिडोर का फायदा भारत, यूएई, सऊदी अरब, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय यूनियन समेत आठ देशों को इस प्रोजेक्ट का फायदा मिलेगा। दो महाद्वीपों में फैला एक अंतरराष्ट्रीय रेल और शिपिंग मार्ग एशिया, अरब की खाड़ी और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और आर्थिक गतिवधियों बढ़ेगी, जिसका फायदा इकॉनमी को बढ़ाने में मिलेगी। इतना ही नहीं भारत के मुंबई से शुरू होने वाला यह कॉरोडिर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विकल्प होगा। इतना ही नहीं ये कॉरिडोर भारत और अरब देशों के बीच के संबंधों को मजबूत करेगा।
इस कॉरिडोर के रूट की शुरुआत समुद्री मार्ग से मुंबई से Jebel Ali, यूएई से शुरू होकर अगला पड़ाव रेल के जरिए सऊदी अरब और जॉर्डन से इजराइज के हाफिया पोर्ट तक होगा। वहीं तीसरा हिस्सा हाफिया पोर्ट से ग्रीस में पीरियस होते हुए यूरोपीय यूनियन में प्रवेश करेगा। हालांकि इस प्रोजेक्ट के कॉस्ट को लेकर कहीं कोई बात नहीं की गई है। इस कॉरिडोर से माल ढुलाई पर आने वाले खर्च के बारे में भी कोई बात नहीं की गई है।
मौजूदा वक्त में मुंबई से ग्रीस तक स्वेज़ नहर के जरिए परिवहन होता है, जो कि ट्रांसपोर्टेशन का किफायती रास्ता है। आईएमईसी कॉरिडोर को स्वेज़ नहर वाले मार्ग से और अधिक किफायती होना होगा, जो थोड़ा मुश्किल लग रहा है। जमीन के मुकाबले समुद्र के रास्ते परिवाहन करना आसान और सस्ता होता है। रोड और रेल के मुकाबले जहाज से माल ढुलाई सस्ता और आसान रहा है। रेल और रोड के जरिए माल ढुलाई ईंधन और खर्च दोनों को बढ़ाता है। स्वेज़ कैनल यूरोप से भारत तक समुद्री रास्ते से माल ढुलाई का सस्ता विक्लप है। भले ही समंदर का रास्ता लंबा हो, लेकिन फिर भी लो रेल माल ढुलाई से सस्ता पड़ता है। इसे अमेरिका के पनामा कैनाल के फॉर्मूले से समझते हैं। अमेरिका पूर्व से पश्चिम तक माल ढुलाई पनामा कैनाल के जरिए करता है। पनामा कैनाल रेल मार्ग से काफी लंबा है, लेकिन भारी भरकम कैनाल फीस देने के बावजूद ये काफी किफायती है।
एक और उदाहरण से समझ लेते हैं। ओडिशा को माइनिंग का प्रमुख राज्य है। ये दक्षिण और पश्चिम राज्यों के पावर स्टेशन को कोल भेजने का काम करता है। पहले ये काम रेल के जरिए होता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से समंदर के जरिए पारादीप पोर्ट के जरिए आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु तक भेजे जाते हैं। भले ही ये रास्ता लंबा है, लेकिन सस्ता होने की वजह से अब समुद्री रास्ते से ही माल ढुलाई होती है। समुद्री मार्ग कैसे रेल या सड़क मार्ग से सस्ता पड़ता है, इसे आंकड़ों से समझते हैं। ओडिशा के पारादीप से गुजरात के दहेज पोर्ट तक कोल भेजने में 256 रुपये प्रति टन का खर्च आता है। लोडिंग के खर्च को जोड़ दें तो ये 560 रुपये प्रति टन तक पहुंच जाता है। ये खर्च रेल से माल ढुलाई पर आने वाले खर्च का आधा है।