देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के IPO से पहले सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया है। इसके तहत लिस्टेड सरकारी कंपनियों में कम से कम पब्लिक होल्डिंग के नियम को खत्म किया जा सकता है। सरकार ने इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। यह रिटेल निवेशकों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
कंपनी भी रिटेल निवेशक की ही कैटेगरी में आती है
हालांकि किसी भी IPO में जो भी हिस्सा बिकता है, उसमें जो भी निवेशक आता है, वह रिटेल की ही कैटेगरी में आता है। चाहे भले वह कोई कंपनी ही क्यों न हो। जहां तक LIC की बात है तो यह शुरू में 10% हिस्सेदारी ही इश्यू में बेच सकती है। इसके बाद यह बाकी हिस्सेदारी बेच सकती है। इसके पीछे यह कारण है कि पहले थोड़ी हिस्सेदारी बेचकर बाजार का मूड समझा जाए और सही तरीके से इसके वैल्यूएशन को निकाला जाए।
कई चरणों में हिस्सेदारी बिकेगी
इश्यू के बाद सरकार इसे कई चरणों में बेच सकती है। आगे चलकर हो सकता है कि इश्यू की तुलना में ज्यादा वैल्यूशएन कंपनी को मिल जाए और सरकार को ज्यादा पैसा भी हिस्सेदारी बेचने पर मिल जाए। इस मामले में बीमा सेक्टर की एक बड़ी कंपनी के पूर्व अधिकारी ने कहा कि यह तो सीधे-सीधे रिटेल निवेशकों को दूर रखने की योजना है। जब जनता की कम से कम हिस्सेदारी को खत्म कर दिया जाएगा, तो उसमें जनता कैसे हिस्सा लेगी? यानी LIC जैसी बड़ी कंपनियों में रिटेल निवेशकों को दूर किया जा रहा है। यही नहीं, इसके बाद बड़ी कंपनियां या बड़े निवेशक इस तरह की कंपनियों में शेयर होल्डर बन जाएंगे।
बड़े निवेशकों को मिलेगी ज्यादा हिस्सेदारी
इस अधिकारी ने कहा कि इसका असर यह होगा कि बड़े निवेशकों को ज्यादा हिस्सेदारी दे दी जाएगी और हजारों निवेशकों की बजाय महज कुछ गिनती के बड़े निवेशक ही इसके हिस्सेदार होंगे। LIC के इश्यू से पहले सरकार का यह फैसला रिटेल निवेशकों के लिए एक बड़ी कमाई का अवसर गंवा सकता है।
कम से कम 25% हिस्सेदारी जनता के पास होनी चाहिए
अभी तक सेबी के नियमों के मुताबिक, किसी भी लिस्टिंग कंपनी में कम से कम 25% हिस्सेदारी जनता के पास होनी चाहिए। 2010 तक यह नियम 10% का था, पर उसी साल इसे बढ़ाकर 25% कर दिया गया था। हालांकि यह हिस्सेदारी कंपनी के लिस्ट होने के 3 साल के भीतर करनी होती थी। लेकिन जैसे ही LIC IPO की तैयारी शुरू हुई, सरकार ने हाल में इस नियम को सरकारी कंपनियों के लिए बदल दिया। नए नियम में यह कहा गया है कि इसे 5 साल में पूरा करना होगा, न कि तीन साल में।
सरकार का यह दूसरा बदलाव है
दूसरी बार सरकार यह बदलाव कर रही है कि इस नियम को ही सरकारी कंपनियों के लिए खत्म कर दिया जाए। यानी LIC की लिस्टिंग के बाद उसमें जनता की कम से कम हिस्सेदारी का मामला न रहे। वित्त मंत्रालय के डिपॉर्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स ने यह नोटिफिकेशन जारी किया है। अभी तक नियमों के मुताबिक, अगर कोई कंपनी इसे पूरा नहीं करती है तो उस पर 10 हजार रुपए हर दिन की पेनाल्टी स्टॉक एक्सचेंज लगा सकते हैं। साथ ही प्रमोटर और प्रमोटर ग्रुप की पूरी होल्डिंग को भी डिपॉजिटरी के जरिए फ्रीज करवाया जा सकता है।
मार्च तक आएगा इश्यू
LIC का इश्यू अगले साल मार्च के पहले आने की तैयारी में है। इसके जरिए सरकार 80 हजार से 1 लाख करोड़ रुपए जुटाने की योजना बना रही है। लिस्टिंग के बाद इसका मार्केट कैपिटलाइजेशन 10-12 लाख करोड़ रुपए होने की उम्मीद है। यानी देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के करीब यह होगी। कंपनी ने योग्य पॉलिसीधारकों का डेटा बेस बनाना शुरू कर दिया है। कई लोगों के पास LIC की एक से ज्यादा पॉलिसी है कंपनी की प्रक्रिया से सिंगल बेनेफिशिएरी तय होगा। एलआईसी में सरकार की कैपिटल महज 100 करोड़ रुपए है। हालांकि पिछले 50 सालों से यह केवल 5 करोड़ रुपए थी और 2012 में इसे बढ़ाकर 100 करोड़ रुपए किया गया।
सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने के लिए काम करने वाले डिपॉर्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट (DIPAM) ने 15 जुलाई को IPO के लिए बुक रनिंग लीड मैनेजर, कानूनी सलाहकार और शेयर ट्रांसफर एजेंट्स को नियुक्त करने के लिए आवेदन मंगाया है।
1 लाख से ज्यादा कर्मचारी
एलआईसी के पास इस समय एक लाख से ज्यादा इसके पास कर्मचारी हैं। 12.08 लाख एजेंट हैं और 28.92 करोड़ से ज्यादा पॉलिसीज हैं। कुल 28 प्लान इंडिविजुअल बिजनेस के तहत एलआईसी ऑफर करती है। इसमें एंडोमेंट, टर्म इंश्योरेंस, चिल्ड्रेन, पेंशन, माइक्रो इंश्योरेंस आदि हैं। अभी एलआईसी का एक ही शेयर है। इस शेयर को ही बांटा जाएगा और फिर करोड़ों शेयरों का निर्माण होगा।