अप्रैल माह में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान 28 मई को आखिरकार वह दिन आया जब बालाघाट स्थित जागपुर घाट श्मशान में कोविड गाइडलाइंन से किसी भी मृतक का अंतिम संस्कार नहीं किया गया।
लगभग 60 दिन बाद ही सही लेकिन जागपुर घाट श्मशान में पहली बार इतना सन्नाटा देखा गया। 28 मई को काफी दिनों बाद मोती नगर से लेकर जागपुर घाट के आसपास निवास करने वाले लोगों ने एंबुलेंस का सायरन नहीं सुना।
लंबे इंतजार के बाद किसी ने किसी से यह नहीं कहा पता नहीं कौन चला गया? गाड़ी तो आई है मगर कितने शव भरकर लाई है। श्मशान घाट में कोई परिजन दिखाई नहीं दे रहा है। शायद 28 मई की तारीख उस पल का इंतजार कर रही थी। जब लोग कहे कि आज किसी का अंतिम संस्कार कोविड-गाइडलाइंन के तहत नहीं हुआ। किसी ने पीपीट पहनकर किसी के शव को मुखाग्नि नहीं दी।
लेकिन वहीं दूसरी और वारासिवनी तहसील मुख्यालय से लेकर ग्रामीण अंचलों में बीते दिनों की तरह मौत का सिलसिला नहीं थमा। 28 मई को वारासिवनी, रामपायली, गर्रा, डोके और थानेगांव में एक-एक शव का अंतिम संस्कार किया गया।।
जैसा कि हम बीते कुछ दिनों से लगातार आपको बताते आ रहे हैं कि शहरी क्षेत्र में कोरोना का संक्रमण बीते दिनों की तुलना में काफी कम हुआ है। पॉजिटिव मरीजों की संख्या कम आई है। सरकारी लेकर निजी अस्पताल में कोविड वार्ड खाली पड़े हैं। यहां तक की बहुत से कोविड के निजी अस्पतालों को बंद करने की नौबत आ गई है। लेकिन अब भी ग्रामीण अंचलों में संक्रमण का दौर कम नहीं हुआ है। जिसकी बानगी रोजाना ग्रामीण अंचलों में मौत के आंकड़ों से सामने आ रही है।