बालाघाट : इलाज के नाम पर जनता को बेदर्दी से लूटा जा रहा,सिंडिकेट के रूप में चल रहा गोरखधंधा

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(उमेश बागरेचा)

बालाघाट (पद्मेश न्यूज) । जिले की जनता को  इलाज के नाम पर डॉक्टर और औषधि व्यवसाई मिलकर लूट रहे हंै । लूट भी कोई छोटी मोटी नहीं हो रही ।  जनता एक तरफ महंगाई की मार , दूसरी तरफ कोरोना की मार , तीसरी तरफ आमदनी की मार से त्राहिमान हो रही है । लेकिन ……..सौदागरों में थोड़ी सी भी इंसानियत नहीं कि आखिर लूट की कोई सीमा निर्धारित कर लें ।  आम आदमी आर्थिक रूप से दो खर्चों से ही बुरी तरह टूट रहा है, एक चिकित्सा दूसरा शिक्षा । कोरोना काल ने इस लूट को अच्छी तरह उजागर किया है, किंतु भ्रष्ट प्रशासन तंत्र के संरक्षण के चलते आज भी ये कतिपय लोग इलाज के नाम पर एक गिरोह के रूप में मरीज को नोचकर अपनी संपत्ति में वृद्धि कर रहे है ।

कंपनी के टारगेट पर होता है काम

इस लूट के लिए जेनेरिक औषधि निर्माता कंपनी , डॉक्टर और मेडिकल स्टोर्स के बीच एक गठबंधन होता है, जिसमे सर्वप्रथम डॉक्टर को  कंपनी एक टारगेट देती है कि आपको हमारी अमुक दवा इतनी मात्रा में लिखनी होगी इसकी एवज में लाखों की डील होती है, वह नगदी में भी हो सकती या विदेश यात्रा के खर्चे के रूप में या किसी महंगी वस्तु जैसे महंगी कार आदि।  फिर उक्त दवा मेडिकल स्टोर्स में उपलब्ध कराई जाती है जो सामान्यतया डॉक्टर के क्लिनिक परिसर में ही संचालित होती है , इसमें भी कमीशन एक अलग खेल होता है। खैर उसके बाद डॉक्टर उस दवा को टारगेट के रूप में लिखना चालू कर देता है भले ही मरीज को उक्त दवा देना आवश्यक ना हो। उन्हे टारगेट पूरा करना है तत्पश्चात  मेडिकल स्टोर्स का रोल शुरू होता है, उसमे यह कि उदाहरण के रूप में उक्त दवा मेडिकल स्टोर्स को आती है 30 से 40 रुपए में और उसका रिटेल प्रिंट होता है 299 रुपए अर्थात 40 रुपए की दवा मरीज को 299 रुपए में मिल रही है, जबकि यही दवा नामी गिरामी ब्रांड कंपनी की जिसका रिटेल प्रिंट 124 रुपए है में मिल जाती है, मतलब  जो दवा मरीज को 124 रुपए में मिल जानी थी वो 299 रुपए में मिल रही है याने 175 रुपए अधिक कीमत में जबकि वो दवा दुकानदार को 40 रुपए में मिली है और बिकी 299 रुपए में, शुद्ध लाभ 259 रुपए। अब आप ही बताए किकौन से व्यवसाय में  40 रुपए के इन्वेस्टमेंट में 259 रुपए बनता है। अब इस 259 रुपए में 60 प्रतिशत के हिसाब से 155 रुपए डॉक्टर के और 40 प्रतिशत के हिसाब से 104 रुपए दुकानदार के । चलिए अब इस दवा का नाम भी बता देता हु । इसका इथिकल नेम रेबेप्राजोल इंजेक्शन है जो लुपिन नामक ब्रांड कंपनी रेबलेट के नाम से तथा जेनेरिक कंपनी रबरब के नाम से बनाती है । ये तो एक उदाहरण मात्र है ऐसी अनेक दवाएं है । ऐसे में मरीज या उसके परिजन को जागरूक होना पड़ेगा । उसे इथिकल (फार्मूला) नेम ज्ञात करके उस दवा का सब्सिट्यूट (स्थानापन्न) दवा जो कम कीमत की हो पता करके खरीदनी होगी । लेकिन इसमें भी डॉक्टर दिक्कत करेगा उसका दबाव आयेगा कि परिसर में संचालित दुकान से लिखी हुई दवा मरीज खरीदे ।

धड़ल्ले से बेची जा रही नशे की दवाईयां

अब तीसरे मुद्दे पर आ जाते है जो ये है कि जिले की दवा दुकानों में नशे की दवाइयां बेधडक़  बगैर डॉक्टर की पर्ची के धड़ल्ले से बेची जा रही है। इनमे CODIN सिरप( नारकोटिक्स ड्रग) तथा ,अल्प्राजोल (ट्रंकलाइजर ड्रग) शामिल है।


एक साल में होते है लाखों के वारे-न्यारे
अब आते है हम उपर्युक्त इन सब बातों पर जिसको नजर या नियंत्रण रखना है उस जीव को जिसे औषधि निरीक्षक ( DRUG INSPECTOR) डीआई  भी कहा जाता है ।  कोविड़ काल के बीच में जून 2021 को जबलपुर से स्थानांतरित होकर एक महिला ड्रग इंस्पेक्टर बालाघाट आई है । अपने 3 माह के कार्यकाल में बमुश्किल 18 दिन ही उन्होंने जिले में अपनी सेवा दी है शेष 72 दिन उन्होंने शायद जबलपुर अपने घर में ही व्यतीत किए होंगे । लेकिन सरकार से तनख्वाह ली पूरे 3 माह की? इनका हेड क्वार्टर बालाघाट है तो इन्हे स्थाई रूप से बालाघाट में रहना चाहिए, मगर ऐसा नहीं है।  इनकी ड्यूटी है कि उपर्युक्त इन बातों को संज्ञान में लेकर आवश्यक वैधानिक कार्यवाही करे। डीआई के ऊपर तात्कालिक अधिकारी सीएमएचओ  (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ) होता है । डीआई सीएमएचओ को रिपोर्टिंग करता है । सीएमएचओ की भी जवाबदारी होती  है कि डीआई की गतिविधियों पर नजर रखे । अब सवाल उठता है कि डीआई बालाघाट जो 18 दिन रही उसमे उन्होने क्या किया। वैसे भी माना जाता है जब किसी दुकान का इंस्पेक्शन डीआई द्वारा किया जाता है तो वो खानापूर्ति मात्र होता है। क्योंकि जिले में जितनी दुकानें है उनसे ईयरली बंधा होता है। जिले में लगभग 800 दुकानें है जिनसे 4000 प्रतिवर्ष का फिक्स रहता है अब आप 800 & 4000 कर लीजिए = 3200000 होता है। नई दुकान का लाइसेंस बनाने का  25000 पूर्व में ये रेट 15000 था अब ये जबसे आई है 25000 हो गया है। इसमें बिचौलिए का काम ड्रग इंस्पेक्टर के ऑफिस में पदस्थ मुबारक नामक बाबू करता है जिसके अनुसार इसमें उपर के लोगों का भी हिस्सा होता है। अभी  लगभग  40 नए लाइसेंस बने है जिसमे  25 के हिसाब सेे 40 का 1000000 होता है । फिर क्यों ना चैन की नींद सोया जावे दवाई के उपभोक्ताओं से क्या मिलना है।
अब एक डॉक्टर से ही उम्मीद
यहां अब नए कलेक्टर डॉक्टर गिरीश मिश्रा से इसलिए कुछ सुधार की उम्मीद बंधती है क्योंकि वे पहले एक डॉक्टर हैं और चिकित्सा से संबंधित सभी गुण दोषों को बेहतर तरीके से समझते हैं। इसलिए हम सिर्फ इतनी गुजारिश करते है कि दुकानदारों और डॉक्टरों का मरीजों को लूटने का जो सिंडिकेट बना हुआ है उस पर वे थोड़ा भी अंकुश लगा देंगे तो इंसानियत के लिए एक अच्छा कदम होगा।


४० से १०० गुना अधिक दाम पर बेची जा रही दवाएं

अब हम लूट की इंतहा वाले मुद्दे पर आते है जिसमे दुकानदार द्वारा  5.11 (पांच रुपए ग्यारह पैसे) रिटेल प्रिंट का एविल 2 एम एल नामक इंजेक्शन  को 5 का 50 मे भी नही पूरे 209 रुपए में बेचा जा रहा है , चालीस गुना अधिक दाम पर वह भी पक्के बिल से । इसी तरह डॉक्सोवेंट इंजेक्शन ग्लेनमार्क कंपनी का  जिसकी अधिकतम रिटेल कीमत 13.50 (तेरह रुपया पचास पैसा है) को 1475 (चौदह सौ पचहत्तर रुपए) में बेचा जा रहा है । मरीज को दो इंजेक्शन 2950 रुपए में बकायदा बिल में बेचा गया। याने तेरह रुपए का इंजेक्शन चौदह सौ पचहत्तर रुपए में , 100 गुना अधिक दाम?  इसके प्रमाण स्वरूप पक्के बिल की स्कैन कॉपी के अंश इसी समाचार में प्रस्तुत है । वाह रे क्या बात है? कोई देखने वाला नहीं? अंधेर नगरी चौपट राजा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है ।

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