अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल म्यूकर माइकोसिस बीमारी से मरीज ने अपना खोया हुआ जबडा पुन: प्राप्त कर लिया। यह संभव हो पाया है एम्स के डॉक्टरों की कडी मेहनत से। एम्स के डॉक्टरों की टीम ने इम्प्लांट कर जबडा लौटा दिया है। मरीज पहले जैसा हुबहू जबड़ा पाने के बाद अब भोजन चबाकर करने लगा हैं। जायगोमेटिक इम्प्लांट सर्जरी से यह संभव हुआ है, जो कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल के दंत रोग विभाग ने की है। मप्र में यह पहला मामला है, जब म्यूकर माइकोसिस बीमारी से जबड़ा गंवाने वाले व्यक्ति को बीमारी से पूर्व की तरह जबड़ा मिला है। बता दें कि इस बीमारी ने कई लोगों की जिदंगी छीन ली थी। इस बीमारी से जीतने वाले लोगों में से ज्यादातर तो अभी भोजन नहीं चबाने जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। भोपाल के रहने वाले म्यूकर माइकोसिस से पीडित दिनेश सिंह (कल्पित नाम) का बीमारी के कारण ऊपरी जबड़ा (दोनों ओर की मेक्सक्सिलरी हड्डी) सड़ गया था। ऊपरी दांत हिलने लगे थे। जिसके कारण वह और उसके स्वजन घबरा गए थे। तब वह इलाज कराने के लिए एम्स पहुंचे थे। उन्होंने दांत रोग विभाग के डा. अंशुल राय से संपर्क किया था। जिन्होंने आपरेशन कर उक्त जबड़े को काटकर हटा दिया था। डाक्टर के मुताबिक इसके अलावा दूसरा विकल्प नहीं था। इस तरह उनकी जान बची थी। उनका जबड़ा डेढ़ वर्ष पूर्व किया था, तभी से वह भोजन नहीं चबा पा रहे थे। मरीज परेशान हो गए थे। उन्होंने जबड़ा पाने के लिए मुंबई के कुछ डाक्टरों से संपर्क किया था, इलाज भी कराया। मरीज के स्वजनों के मुताबिक वहां न्यूनतम आठ लाख रुपये खर्च बताया था, जो कि उनके पास इतनी राशि नहीं थी। जिसके बाद उन्होंने एम्स पहुंचकर दिखाया था, जहां डाक्टरों ने उन्हें जायगोमेटिक इम्प्लांट्स लगाकर ऊपरी जबड़ा व दांत लगाने की सलाह दी थी। एम्स में बहुत कम खर्च आया है। मरीज को जबड़ा व दांत लगाने पर काफी खर्च आता है। इसके लिए एम्स भोपाल ने इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) से आर्थिक मदद मांगी है, ताकि इस तरह की बीमारी में जबड़ा गंवाने वालों को मुफ्त में इलाज किया जा सके। वहीं इस उपलब्धी पर एम्स के कार्यपालक निदेशक प्रो. डा. अजय सिंह व दांत रोग विभाग के प्रमुख डा. पंकज गोयल ने डाक्टरों के उक्त दल का उत्साहवर्धन किया है। विभाग के डा. अंशुल राय के मुताबिक यह दांत लगाने की बहुत जटिल प्रक्रिया होती है। जिसमें बगैर हड्डी के दांत लगाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि सबसे पहले जायगोमेटिक इंम्प्लांट का आपरेशन किया गया, जो करीब दो घंटे चला।