प्रदेश में एंटी इनकंबेंसी का लाभ उठाने की क्षमता क्या आज कांग्रेस के पास है ?

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उमेश बागरेचा
2023 चुनावी वर्ष। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव आज से 10 माह बाद होना है । चुनावी गप-शप शुरू हो चुकी है । राष्ट्रीय दल कांग्रेस-भाजपा भी चुनावी मोड़ पर आ चुके है। मध्यप्रदेश में कुछ एक गिनती की विधानसभा सीटों को छोड़ दें तो लगभग सभी सीटों पर कांग्रेस -भाजपा की वन टू वन फाईट होना है। पूर्व के वर्षों में समाजवादी पार्टी एवं बसपा को जो जनाधार बना था जिसके तहत इन दलों को 5-10 सीटें मिल जाया करती थीं, वह अब नहीं रहा है। राजनैतिक गलियारों में जो हवा बह रही है और उसके आधार पर कांग्रेसियों के मन में जो लड्डू फूट रहें हैं वह यह कि संघ, भाजपा और निजी एजेंसियों के सर्वे में एंटी इनकंबेंसी के चलते भाजपा का चुनाव जीतना कठिन है और कांग्रेस के लिए सत्ता का रास्ता खुल रहा है , मेरी नजर में यह कांग्रेस का ख्याली पुलाव है जो दिन में भी सपने देखने जैसा है। ये सच है कि मैदान में कांग्रेस के लिए पॉजिटिव माहौल है। लेकिन क्या कांग्रेस में इस पॉजिटिविटी को अपने पक्ष में कर पाने की कुबत है। उपर से लेकर नीचे तक कांग्रेस संगठन चरमराया हुआ है। भाजपा की सत्ता का चौथा टर्म पूरा होने जा रहा है, जिसमें लगभग 17-18 साल से शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री पद पर आसीन है। मध्यप्रदेश की आम जनता के बीच में आज भी शिवराज सिंह जीतना पसंदीदा नेता ना तो भाजपा के पास है और ना ही कांग्रेस के पास है । कांग्रेस ने सत्ताच्युत होने बाद के इन 17 वर्षो में कभी भी विपक्ष की भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया और ना ही जनहित के मुद्दों को लेकर सडक़ पर सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया । आज भी कांग्रेसियों को विपक्ष की भूमिका निभाना नहीं आता, इसलिए उन्होंने इन चीजों में अपना समय गंवाने से अच्छा सत्ता के साथ सामंजस्य बिठाने पर ही अधिक ध्यान लगाया। इसी का परिणाम है कि कांग्रेस के निचले स्तर के नेताओं से लेकर प्रदेश स्तर के नेताओं में आपस में गलबहियां बनी रही, जो बकायदा चुनाव के समय प्रत्याशी चयन और चुनाओं के दौरान भी दिखाई देती रही। जिसका एक छोटा सा उदाहरण यहां मैं दे देता हूं जो कि जनचर्चा में भी है। वह यह है कि बालाघाट के पड़ोसी जिले के एक कद्दावर कांग्रेस नेता जो प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं का बालाघाट जिले के भाजपा के कद्दावर नेता से बेहद गहरा राजनैतिक रिष्ता है जिसके चलते बालाघाट विधानसभा में पिछले अनेक चुनाओं से भाजपा के इस कद्दावर नेता के खिलाफ कांग्रेस की ओर से ऐसे प्रत्याशी को मैदान में उतारा जाता रहा है जो कमजोर हो, जिसकी जमानत तक जप्त हो जाए और भाजपा के कद्दावर नेता विजयी हो जाएं। इसका दूसरा उदाहरण वारासिवनी विधानसभा क्षेत्र से सीटिंग विधायक प्रदीप जायसवाल का टिकट काटकर 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह के साले साहब संजयसिंह को कांग्रेस की टिकट देकर जमानत जप्त कराकर विधानसभा क्षेत्रों में कांग्र्रेस संगठन को तार-तार कर बगरा देना यही प्रदेश कांग्रेस की कार्यशैली है। इनकी गलबहियां पिछले दिनों कद्दावर नेता जिनका नाम गौरीशंकर बिसेन है के भोपाल स्थित बंगले में एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया में सार्वजनिक हुई फोटो में भी जनता के सामने उजागर हुई है, और चर्चा का विषय भी रही है कि एक राष्ट्रीय स्तर का नेता कैसे घंटो तक बिना किसी वजह टाइम पास कर सकता है जहां उनके पास कोई महत्वपूर्ण नेता भी बैठा हुआ नहीं था, जिसमें कोई मान-सम्मान प्रदर्शित हो। ऐसा ही माहौल पूरे प्रदेश में सरकारी ठेकों चाहे वह शराब का हा, रेत का हो, रोड का हो या सप्लाई का हो सभी में सत्तासीनों के साथ कांग्रेस के प्रभावशाली लोगों की भागीदारी है। इन परिस्थतियों में सडक़ पर उतरकर ये कांग्रेसी कैसे सत्ता को कोसेंगे कि फला जगह गड़बड़ी है क्योंकि वहां इनकी भी भागीदारी है। जिसके चलते विपक्ष की भूमिका निभाने में कांग्रेसी शिथिल पड़ रहे । 2018 में सत्ता मिली भी तो उसे संभाल ना सके क्योंकि नेतृत्व की जो प्रचलित संस्कृति लाईन में लग जाओ और फिर नेतृत्व जी आयेंगे और एक-एक से गुजरते हुए है टाटा बॉय-बॉय कहते हुए चलो-चलो कहेंगें। इसी चलो-चलो ने सरकार को भी चलता कर दिया । कांग्रेस नेता मजबूरी में घंटो एक झलक दिखलाने बंगले में इंतजार में बैठे रहते हैं क्योंकि सत्ता की भूख में सम्मान को किनारे कर बैठना जरूरी है लेकिन अंदर ही अंदर अपनी इस बेबसी को कोसते भी हैं। 18 माह की सत्ता जाने के बाद उम्मीद थी कि नेतृत्व अब चलो-चलो की संस्कृति को तिलांजलि जरूर देंगे, क्योंकि भाजपा में जाने वाले कांग्रेसी विधायकों का भी यही दर्द था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, वही परिपाटी चल रही है, उन्हीं गलानी साहब की चल रही है जहां चाटुकार पार्टी को दीमक की तरह चाट रहे हैं। आम चर्चा, जो कांग्रेसियों के बीच में भी है कि दरबार कार्यकर्ताओं या नेताओं की सही पहचान नहीं कर पा रहा है। दरबार में चमक दमक की पूछ-परख होती है। अब ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में सही प्रत्याशी जो जीत दिला सकता है का चयन कांग्रेस में कैसे होगा यह चिंतनीय है । कांग्रेस इसी मुगालते में है की एंटी इनकंबेंसी का फायदा होगा और सत्ता मिल जायेगी लेकिन यह आसान नहीं है। क्योंकि आज भी मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह का जनाधार आम जनता जिन्हे सरकारी स्किमो का लाभ मिल रहा में बना हुआ है, इसके अतिरिक्त मोदी मैजिक भी है, हिंदुत्व है, सत्ता है, चांदी की चमक है, खरीदने की ताकत है, बिकाऊ उपलब्ध है, व्यक्ति  या नेता के व्यतित्व या क्षमता को परखने का मादा है, संगठन और संघ है और सबसे बड़ी बात इनके पास शाम दाम दण्ड भेद की नीति है । इसके विपरित जो 2023 का ख्वाब देख रहे हैं उनके पास मात्र दाम है? इसे उल्टा समझें । कांग्रेस में जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक आज भी अत्यधिक गुटबाजी है जिसका नुकसान होना स्वाभाविक है। हालांकि गुटबाजी भाजपा में भी है और रहती आयी है लेकिन समय आने पर संगठन उस पर लगाम लगा देता है, जिससे नेता दाएं बाएं नही हो पाते। भाजपा में तो वो शक्ति है जो पूरे घर के बदल डालती है फिर भी विजय प्राप्त करती है क्या कांग्रेस में है यह क्षमता है? कांग्रेस को शायद ये भी भ्रम हो गया है कि भारत जोड़ो यात्रा से कुछ प्रतिसाद मिल जायेगा लेकिन वह मुगालते में है। यह जरूर है कि लोगों में परिवर्तन की आस है ,कर्मचारी भी सत्ता के खिलाफ है, लोगो में यह चर्चा भी है की माहौल कांग्रेस के लिए अच्छा है। लेकिन क्या प्रदेश कांग्रेस में इस अवसर का लाभ उठाने की क्षमता है इसी को परखने की आज जरूरत है।

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