“याद तो हमेशा आती है। हर पल, हर सुबह। उसकी यादें मन में बसी हुई है। सुबह उसकी फोटो से बात करने के बाद ही मेरी सुबह होती है। लगता है अब वह लौट आएगा। उसकी हर चीज देखकर उसकी यादें आती है। उसके दोस्त यहां से गुजरते हैं तो लगता है कि जैसे वह उनके साथ स्कूल से लौट रहा है। कानों में उसकी आवाज गूंजती रहती है। उस हादसे के बाद मैं कभी खेत नहीं गई। अगर मैं वहां चली जाऊं तो फिर वापस नहीं लौट सकूंगी। मेरी हिम्मत ही नहीं है कि मैं उस मौके पर जाऊं। जहां तन्मय बोर में गिरा था। उस इंसान को देखती हूं, जिसके बोर में यह हादसा हुआ तो तन बदन में आग लग जाती है। आज तक इस मामले में कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई। वह 15 दिन में जेल से वापस लौट आया।। कम से कम 6 महीने जेल में रखा जाता तो दूसरे लोगों को सबक मिलता। जिन्होंने अपने बोरवेल खुले छोड़ रखे हैं, उन पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए। मुख्यमंत्री जी से अपील है कि वे हमको अपनी बहन भांजी मानते हैं तो इस तरह की जो घटनाएं बोरवेल में बच्चों के गिरने की हो रही हैं, उस पर वह सख्त कार्रवाई करवाएं। बहुत मुश्किल होता है। बच्चों से दूर रहना। बेहद तकलीफ वाले दिन होते हैं। ऐसी तकलीफ कि मैं उसे बयां नहीं कर सकती। मैं जिस तकलीफ में बेटे के बिना दिन गुजार रही हूं बता नहीं सकती।”
ये उस मां का दर्द है। जिसने पिछले 6 दिसंबर को बोरवेल में गिरे अपने 8 साल के मासूम बेटे को खो दिया। बैतूल के मांडवी निवासी ज्योति के कानों में आज भी अपने बेटे की आवाजे गूंजती हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। 84 घंटे चले रेस्क्यू आपरेशन के बावजूद ज्योति और सुनील के बेटे तन्मय को बचाया नहीं जा सका। यह टीस पिता के दिल पर भी नश्तर बनकर चुभती रहती है। यह दर्द उन्हे अंदर ही अंदर जख्म देता रहता है की काश! बेटे का रेस्क्यू जल्दी कर लिया जाता तो शायद उसकी सांसों की डोर नही टूटती। इकलौता बेटा खोने वाले सुनील साहू अपनी व्यथा रोकर भी नही बता सकते, लेकिन बात करते करते उनकी आवाज भर्रा जाती है। गला रूंध जाता है।
रेस्क्यू में देरी से गई जान
“रेस्क्यू मैं बहुत लापरवाही हुई दो-दो घंटे बोलकर पूरे 84 घंटे लगा दिए गए । काम तो किया पर लापरवाही बहुत हुई। पीएम रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि जब उसकी लाश निकाली गई तो उसके 2 दिन पहले ही उसकी जान चली गई थी। इससे साफ है कि रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी हुई है। अगर रेस्क्यू जल्दी कर लिया जाता तो शायद उसका बेटा आज जिंदा होता । तन्मय उन्हें बहुत याद आता है। नींद खुलती है तो वह बिस्तर पर ही उसे टटोलने लगते हैं। स्कूली बच्चे जब गली से गुजरते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे उनका बेटा भी स्कूल जा रहा है और अभी कहीं से वह लौट आएगा। यह जज्बात सुनील को बेचैन कर देते है। यह सब कुछ बताते हुए वह दर्द से भर जाते है।
बड़ा होता तो मास्टर ,डॉक्टर बन जाता
विदिशा हादसे के बाद एक बार फिर सुनील और ज्योति के जख्म हरे हो गए है। सुनील बताते है की वह अक्सर मास्टर या डॉक्टर बनने का सपना बुनता रहता था, हमेशा उसकी यही सोच थी कि मैं सर्विस करूंगा। मैं बहुत पैसा कमा लूंगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका । सुनील बताते हैं कि सरकार ने उनसे इस हादसे के बाद बहुत से वादे किए थे। लेकिन कोई वादा पूरा नहीं किया। बेटी की पढ़ाई कराने के लिए भी कहा गया था कि 18 साल तक उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया । कलेक्टर ने भी बहुत आश्वासन दिए थे । शासन प्रशासन ने भी वादे किए थे । नेता आए थे और कहा गया था कि उनके लिए बहुत कुछ किया जाएगा। लेकिन लोग फोटो खींचा कर वीडियो बनाकर चले गए। अब तक 4 लाख के अलावा कोई मदद नहीं हुई है। वे चाहते हैं कि बेटी की पढ़ाई के लिए कोई मदद मिल जाए कोई आर्थिक मदद हो। बहुत कुछ कहा गया था लेकिन कुछ नहीं हुआ।