सरकारी कागजो में अटकी जिंदा और मृत होने की कहानी

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आज से लगभग 1 वर्ष पहले जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर गांव गागुलपारा जलाशय घाटी क्षेत्र में एक नर कंकाल मिला। कंकाल के पास मिली हुई सामग्री के आधार पर पायली पंचायत के निवासी ओझा पाचे के रूप में उसकी पहचान परिजनों द्वारा की गई। इसके आधार पर उनके द्वारा हिंदू रीति रिवाज से मृत्यु उपरांत संस्कार भी कर दिए गए।

आपको पता है कि पायली निवासी ओझा पाचे 27 अप्रैल 2019 से लापता था। 6 महीने बाद पुलिस को गांगुलपरा घाटी क्षेत्र में एक कंकाल मिला उसके परिजनों द्वारा ओझा के होने की बात कही गई।

वहीं दूसरी ओर कंकाल के अवशेषों को पुलिस द्वारा डीएनए जांच के लिए सागर लैब भेज दिया गया। धीरे-धीरे 1 वर्ष का समय बीत गया लेकिन अब तक डीएनए जांच की रिपोर्ट नहीं आई।

ऐसा नहीं है कि परिजनों द्वारा इस 1 साल के भीतर भरवेली थाना पहुंचकर डीएनए रिपोर्ट के विषय में जानकारी ली गई हो । लेकिन वहां इस सवाल का एक ही जवाब मिल रहा है कि जब सागर से रिपोर्ट आएगी तो उन्हें जानकारी दे दी जाएगी।

नर कंकाल की रिपोर्ट नहीं आने से परिजनों को ओझा पाँचे की मृत्यु होने का प्रमाण पत्र नहीं मिल रहा। नतीजा सरकारी योजना में किसी भी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा।
पंचायत सहित अन्य कार्यालयों में उन्हें एक ही सवाल किया जाता है कि पहले मृतक की मृत्यु मृत्यु होने की पुष्टि का कोई प्रमाण मिले तब प्रमाण पत्र बनेगा और आगे की प्रक्रिया की जाएगी।

सच में एक कागज के टुकड़े के लिए एक परिवार 1 वर्ष से परेशान हो रहा है लेकिन सिस्टम की लाचारी के आगे वह भी बेबस है, और इंतजार बस इस बात का है की देर से ही सही लेकिन इस बात की पुष्टि हो जाए कि वह नर कंकाल उसी के परिजन उस ओझा पाचे का था। जिसके बाद रोज उसके अंदर उठने वाले सवाल समाप्त हो जाएंगे।

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