क्या कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया जा सकता है? ये चर्चा इसलिए शुरू हुई क्योंकि मंगलवार को दिल्ली की दो अदालत ने अहम आदेश सुनाए। एक मामला आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया की जमानत से जुड़ा था तो दूसरा केस बीजेपी सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह से। दोनों ही मामले अलग-अलग कोर्ट में सामने आए लेकिन अदालत की ओर से जो कुछ भी कहा गया उस पर दोनों ही पक्षों ने सवाल खड़े कर दिए। चाहे दिल्ली हाईकोर्ट से मनीष सिसोदिया की जमानत याचिकाएं खारिज किए जाने का मामला हो, कोर्ट ने उन्हें जमानत से इनकार कर दिया। हालांकि, आप ने अदालत के फैसले पर असहमति जताई। मंत्री आतिशी ने कहा कि हम इस फैसले से सम्मानपूर्वक असहमत हैं। दूसरी ओर, बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के महिला पहलवानों से यौन उत्पीड़न केस पर दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने उन पर आरोप तय कर दिए लेकिन बीजेपी सांसद ने रिएक्ट करते हुए कहा कि उन्हें दोष कबूल नहीं है।
कोर्ट की टिप्पणी पर सवाल क्यों?
दोनों ही केस भले अलग-अलग हों लेकिन आरोपी पक्ष ने जिस तरह से रिएक्ट किया उसे लेकर नई चर्चा शुरू हो गई है। कहीं कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई जा रही तो कहीं आरोप तय होने के बावजूद अपराध से ही इनकार किया जा रहा। दोनों ही पक्षों ने कोर्ट की टिप्पणियों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और आगे इस पर अपील का प्लान किया है। इन मामलों पर सवाल तो उठने लगे हैं कि क्या नेता कोर्ट के आदेश पर सवाल खड़े कर सकते हैं? जानिए दोनों मामलों में अब तक क्या क्या हुआ।
मनीष सिसोदिया को जमानत याचिका खारिज
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली हाई कोर्ट की ओर से दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज करने के फैसले से असहमति जताई है। पार्टी ने कथित शराब घोटाले को बीजेपी का षड्यंत्र बताते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी को खत्म करने के लिए यह षड्यंत्र रचा गया था। साथ ही कहा है कि मनीष सिसोदिया की जमानत के लिए जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की जाएगी। पार्टी ने उम्मीद जताई है कि जिस तरह से अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत मिली, उसी तरह हम उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से मनीष सिसोदिया को भी न्याय मिलेगा।