मेनोपॉज के दर्द से राहत दिलाएगी दो रुपए की गोली:कमजोर हो रही हडि्डयों और मांसपेशियों को मजबूती देगी बेहद सस्ती दवा

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ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज काफी महंगा है। मेनोपॉज के बाद महिलाओं के शरीर में विटामिन डी और कैल्शियम की बहुत कमी हो जाती है। यदि उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस भी है तो उनकी हड्डियां चॉक की तरह नाजुक हो जाती है और सिर्फ हल्की-सी चोट लगने पर भी हड्डी के टूटने का खतरा होता है। इनकी मांसपेशियां भी कमजोर हो जाती है इसलिए एक फ्रैक्चर होने पर मल्टीपल फ्रैक्चर होने का खतरा और भी बढ़ जाता है। इस स्थिति में महिलाओं को परिपेराटाइट नामक एक इंजेक्टेबल ड्रग दिया जाता है। इसे फ्रिज में रखना होता है और हर रोज इसका एक इंजेक्शन लगाया जाता है, जिससे हड्डियां मजबूत होती है। इस ड्रग का एक महीने का डोज करीब सात हजार रुपए का पड़ता है यानी हर रोज 233 रुपए का एक इंजेक्शन लगाना होता है लेकिन अब नए रिसर्च में इसके इलाज की टेबलेट 2 रु. में होगी। फिलहाल दिल्ली एम्स में इसके फेज-2 पर ट्रायल चल रहा है।

यह जानकारी 37वीं IRCON (Indian Rheumatalogy Association) की एनुअल नेशनल कां‌फ्रेंस में सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट के चीफ साइंटिस्ट डॉ नैवेद्यो चट्टोपाध्याय ने अपने सेशन में साझा की। उन्होंने कहा कि हमने रिसर्च कर पता किया कि दवाइयों में ही इस्तेमाल होने वाला पेंटॉक्सिफाइलिन नामक ड्रग मेनोपॉज के बाद ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित महिलाओं की हड्डियों को मजबूत करने में बिल्कुल परिपेराटाइट की तरह ही काम करता है। इसे गोली के रूप में हर रोज लेना होता है और जिसकी कीमत सिर्फ 2 रुपए है।

मरीजों को उपलब्ध कराने के लिए सरकार से अपील

उन्होंने बताया कि फिलहाल इस ड्रग का फेज-2 ट्रायल एम्स दिल्ली में चल रहा है, जहां 3 पेशेंट ग्रुप पर इसकी जांच की जा रही है। एक ग्रुप को परिपेराटाइट के इंजेक्शन दिए जा रहे हैं, दूसरे ग्रुप को पेंटॉक्सिफाइलिन के 400 और 800 मिलीग्राम के डोज़ दिए जा रहे हैं और तीसरे ग्रुप को ऐसी कोई दवाई नहीं दी जा रही है। इस ड्रग ट्रायल में यदि पेंटॉक्सिफाइलिन पास हो जाता है तो हम सरकार से अपील करेंगे कि इसके मल्टीसेंट्रिक फेज-3 ट्रायल के साथ ही इसे आम लोगों के लिए उपलब्ध करा दिया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका फायदा मिल सकें।

आंखों में आंसू बनाने वाली ग्रंथि पर रिसर्च

कॉन्फ्रेंस के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. आशीष बाडिका ने बताया कि कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन 450 रिसर्च पेपर प्रेजेंट किए गए। इनमें से सबसे अच्छे 12 रिसर्च पेपर्स को चार हॉल्स में स्टेज पर प्रेजेंट किया गया। रविवार को ऐसे ही टॉप नौ पेपर्स का प्रेजेंटेशन होगा। कॉन्फ्रेंस में ऑस्टियोपोरोसिस पर खास सेशन हुआ। साथ ही जोग्रंस सिंड्रोम के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गई। इसमें मरीज की आंखों में आंसू बनाने वाली ग्रंथि ठीक से काम नहीं करती और मुंह में लार भी पर्याप्त मात्रा में नहीं बनती है। इससे मरीज को लगातार बात करने में भी कठिनाई होने लगती है।

इसलिए सोते समय होता है पीठ दर्द

डॉ. बाडिका ने कहा कि एक सेशन वास्कुलाइटिस पर हुआ जो एक जानलेवा ऑटोइम्यून डिसीज़ है। इसमें मरीज को महीनों बुखार रहता है और शरीर पर लाल दाने होने लगते हैं। जनरल फिजिशियन अकसर इसे आम एलर्जी समझ कर इसका इलाज करते हैं और बीमारी फैलकर मरीज की किडनी और लिवर जैसे अंगों को भी प्रभावित करके जानलेवा रूप ले लेती है। इस बीमारी की सही समय पर पहचान करने के लिए मरीजों के साथ ही जनरल फिजिशियन को भी जागरूक करने की आवश्यकता है। स्पोंडिलो अर्थराइटिस पर हुए सेशन में बताया गया कि इस बीमारी में पीठ में दर्द हमेशा सोते वक्त होता है क्योंकि जब तक हम एक्टिव रहते हैं तब तक मांसपेशियों में दर्द करने वाला फ्लुड जमा नहीं होता है पर स्थिर होने के बाद यह फ्लुड जमा होकर बहुत तेज़ दर्द देने लगता है।

कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कंसलटेंट के पास पहुंचे मरीज

कॉन्फ्रेंस के ऑर्गेनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ. वीपी पांडे ने बताया कि यह कॉन्फ्रेंस यंग रूमेटोलॉजिस्ट के लिए बहुत उपयोगी है क्योंकि इसमें उनकी प्रेक्टिकल समस्याओं का निदान किया जाएगा। इसके साथ ही उन्हें रूमेटोलॉजी के क्षेत्र में होने वाली नई रिसर्च और दवाइयों के बारे में भी जानकारी दी जा रही है।कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आम जनता को भी बहुत फायदा मिला। इस बारे में जानकारी मिलने के बाद कई मरीज भी पहुंचे और एक्सपर्ट से कंसल्ट किया। शहर की जनता के लिए यह एक बेहतरीन मौका रहा, जब उन्हें एक ही स्थान पर देश-विदेश के एक्सपर्ट से अपनी जिज्ञासाओं और प्रश्नों के समाधान मिल रहा है।

जापान में 50 सालों से पेशेंट अवेयरनेस ग्रुप्स

जापान में हेल्थकेयर सिस्टम बहुत मजबूत है। वहां सभी नागरिकों का गवर्मेंट हेल्थ इंश्युरेंस होता है जिसमें इलाज का 80 से 90% खर्च सरकार देती है और नागरिकों को सिर्फ 10 से 20 प्रतिशत हिस्सा देना होता है। पर्याप्त मात्रा में अस्पताल होने के कारण लोगों को इलाज भी काफी आसानी से मिल जाता है। यह बात जापान से आए रूमेटोलॉजी असोसिएशन के एशिया पैसफिक प्रेसिडेंट टॉम ताकेउची ने कही। उन्होंने बताया कि जापान में रूमेटोलॉजी के प्रति जागरूकता लाने के लिए पिछले 50 सालों से पेशेंट अवेयरनेस ग्रुप चल रहे हैं। अब तो वहां ऐसे करीब 50 हजार समूह काम करते हैं, जो आम लोगों, मरीजों और सरकार को भी जागरूक करने में अहम भूमिका निभाते हैं इसलिए वहां की सरकार भी रूमेटोलॉजिकल बीमारियों के प्रति अधिक संवेदननशील है।

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