गोल्ड जीतने के बाद भी ताइवान को नहीं मिलता सम्मान, जानिए क्या कहता है इतिहास

0
Tokyo 2020 Olympics - Weightlifting - Women's 59kg - Medal Ceremony - Tokyo International Forum, Tokyo, Japan - July 27, 2021. Gold medalist Kuo Hsing-Chun of Taiwan reacts. REUTERS/Edgard Garrido

Olympics Controversy: टोक्यो ओलंपिक पर आज पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। इसमें मौजूद हर खिलाड़ी अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहा है। जब अपने अथक प्रयास की वजह से खिलाड़ी को जीत हासिल होती है तो यह जीत उसकी नहीं बल्कि उसके देश की होती है। जब वह पेडियम पर अपना स्वर्ण पदक लेने जाता है तो उसके व उसके देश के सम्मान में राष्ट्रगान होता है, खिलाड़ी के देश के ध्वज को ऊपर उठाया जाता है। लेकिन मंगलवार को टोक्यो ओलंपिक में ताइवान की स्टार वेटलिफ्टर के साथ दृश्य कुछ बदला-बदला सा लगा।

जी हां मंगलवार को टोक्यो ओलंपिक में ताइवान की स्टार वेटलिफ्टर कुओ हसिंग-चुन ने जब गोल्ड मेडल जीता और वह पेडियम पर अपना मेडल लेने पहुंची तो नाजारा चौंका देने वाला था। इस दौरान न कोई राष्ट्रध्वज था, न ही कोई राष्ट्रगान बजा। ऐसा पहली बार हुआ कि कोई खिलाड़ी के जीत हासिल करने के बाद उसके पेडियम पर होने के बावजूद उनका कोई ध्वज ऊपर होते हुए नहीं दिखा। जानकर तो आपको भी हैरानी होगी। लेकिन ये तो शायद छोटी सी बात है असल में ताइवान खुद को इन खेलों में ‘ताइवान’ कह भी नहीं सकता। यह ताइवान के लोगों के लिए परेशान करने वाला विषय है।

अपने अंतरराष्ट्रीय स्टेटस की वजह से ताइवान को ओलंपिक्स में काफी समय से एक होस्ट नेम दिया गया है। वह एक लोकतंत्र है जिसकी आबादी लगभग 2.3 करोड़ है। इस देश की अपनी अलग मुद्रा है और अपनी अलग सरकार है। लेकिन इन सब के बावजूद ताइवान का स्टेटस विवादों में है। चीन भले ही ताइवान पर कभी अपना आधिपत्य स्थापित नहीं कर सका लेकिन इन सब के बावजूद चीन ताइवान को ‘वन चाइना’ के तहत अपना हिस्सा मानता है। चीन हमेशा से ही ताइपे को दुनिया में अकेला साबित करना चाहता है और ताइवान शब्द के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताता है।

ऐसे ताइवान का नाम पड़ा ताइपे

ताइवान जब खुद ही एक देश है तो फिर उसका नाम ताइपे कैसे पड़ा? असल में 1981 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमिटी ने चीन के माध्यम से इसका नाम ताइपे तय किया। इसमें ताइवान के ऐथलीट खेलों में भाग तो ले सकते हैं, लेकिन खुद को एक संप्रभुता संपन्न देश का हिस्सा नहीं बता सकते। अपने लाल और सफेद राष्ट्रध्वज के स्थान पर ताइवान के ऐथलीट सफेद झंडे, जिस पर ओलंपिक रिंग्स बनी होती है, के नीचे ओलंपिक का हिस्सा बनते हैं। एथलीट जब पेडियम पर मौ

जब फिलीस्तीन को इजाजत है तो ताइवान को क्यों नहीं

चीन द्वारा ताइवान के साथ ऐसा व्यवहार बेहद ही अपमान जनक है। आलोचकों का कहना है कि यह नाम ताइवान के सम्मान के खिलाफ है। यहां तक कि अन्य विवादास्पद या कम-मान्यता प्राप्त देशों जैसे फिलीस्तीन, को ओलंपिक में अपना नाम और ध्वज इस्तेमाल करने की इजाजत मिलती है। फिर तो ताइवान फिलीस्तीन से काफी समृध्द देश है। 1952 के ओलंपिक में ताइवान और चीन दोनों को न्योता भेजा गया था। दोनों सरकारों ने खुद के चीन का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया था। लेकिन अंत में ताइवान ने हटने का फैसला किया।

ताइवान फिर उतरा ओलंपिक में

ताइवान ने 1960 के खेलों में आईओसी की अनुमति से ताइवान नाम से ही ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया। लेकिन ताइवान की तब की सरकार को इस नाम से आपत्ति थी। वह रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम से ओलंपिक में भाग लेना चाहते थे। इसके बाद भी 160 और 1964 के खेलों में भी ताइवान ने अपने ही नाम यानी ताइवान से ही ओलंपिक में भाग लिया।

नहीं तो ताइवान ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले पाता

अब अगले ओलंपिक की बारी आई तो ताइवान को अपने नाम से नहीं मिला स्थान इसलिए 1972 में ताइवान ने ओलंपिक में आखिरी बार रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम से भाग लिया। लेकन इसके बाद इस नाम को 1972 में ही रद्द कर दिया गया था। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमिटी ने बीजिंग की सरकार को चीन का अधिकारिक प्रतिनिध माना। इसके बाद दो साल बाद यानी 1981 में ताइवान को फिर से ओलंपिक खेलों में भाग लेने की इजाजत मिली लेकिन यहां पर भी एक शर्त रख दी गई कि वह चीनी नाम ताइपे से ही भाग ले सकते हैं और तब से ही ऐसा चले आ रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here