मिड-डे मील का मेन्यू- हलवा-पूरी और पुलाव:MP में बजट में हर बच्चे को 5.14 रु.; हकीकत- मनमर्जी से बन रहा खाना

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मध्यप्रदेश की राजधानी से करीब 50 किलोमीटर दूर सरकारी स्कूल में मिड-डे मील का खाना खाने के बाद 17 बच्चे बीमार पड़ गए। उन्हें बदबू वाला खाना दिया गया था। इसके बाद जांच और खाने वाली समिति को ब्लैकलिस्ट करने से लेकर शाला प्रभारी को सस्पेंड तक कर दिया गया।

सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। मध्यप्रदेश में पहली से 5वीं क्लास के एक बच्चे पर सरकार करीब 5.14 रुपए खर्च कर रही है। स्व सहायता समिति को इतने रुपए में खाना बनाकर बच्चों को मैन्यू के अनुसार देना होता है, लेकिन ऐसा नहीं होता है। समिति उपलब्धता के अनुसार बच्चों को खाना बनाकर देती है।

यह होता है मैन्यू

  • सोमवार : रोटी के साथ तुअर की दाल, चने व टमाटर की सब्जी
  • मंगलवार : पूरी के साथ हलवा, मूंगबड़ी, आलू टमाटर की सब्जी
  • बुधवार : रोटी के साथ चने की दाल एवं मिक्स सब्जी
  • गुरुवार : सब्जी वाला पुलाव और पकौड़े वाली कढ़ी
  • शुक्रवार : रोटी के साथ दाल और चने/ मटर की सब्जी
  • शनिवार : पराठे के साथ मिक्स दाल और हरी सब्जी

बजट बढ़ने का आदेश नहीं आया

बैरसिया के मिड डे मील प्रभारी योगेश सक्सेना ने बताया कि पहली से पचवीं क्लास तक के बच्चों को स्व सहायता समूह द्वारा खाना दिया जाता है। इसके लिए समूह को प्रति व्यक्ति 5.14 रुपए दिए जाते हैं। इसके साथ 100-100 चावल और गेहूं दिया जाता है। 6वीं से 8वीं क्लास के बच्चों के लिए 7.14 रुपए प्रति बच्चे दिया जाता है। इसमें चावल और गेहूं प्रति छात्र 150-150 ग्राम दिया जाता है। समिति को स्कूल परिसार में ही खाना बनाना होता है। अभी शायद बजट बढ़ा दिया गया है, लेकिन आदेश नहीं आए हैं।

किचन शेड पर 2 लाख तक खर्च किए

स्कूल शिक्षा विभाग ने मिड-डे मील का खाना बनाने के लिए स्कूल परिसर में ही किचन शेड बनवाए हैं। इसके लिए हर शेड पर विभाग ने 2 लाख रुपए खर्च किए। यह वर्ष 2018-19 में बनाए गए, लेकिन हकीकत यह है कि शेड में खाना बनाया ही नहीं गया। बैरसिया की ग्रांड रिपोर्ट के दौरान यह सामने आया था कि किचिन शेड घटिया होने के बाद वह कभी खुले ही नहीं। ऐसे में पुराने और गंदे जगह पर खाना बनाया जा रहा है।

मिड-डे मील के लिए यह जिम्मेदार

सक्सेना ने बताया कि मिड-डे मील जनपद पंचायत द्वारा दिया जाता है। इसके लिए स्व सहायता समूह को रजिस्ट्रेशन कराना होता है। उनका एग्रीमेंट होता है। इसी के आधार पर उन्हें स्कूल में मिड-डे मील का काम दिया जाता है। जनपद को ही समूह की जांच से लेकर उसकी निगरानी करना होता है। समूह को खाना परिसर में ही बनाना होता है।

शाला प्रभारी को खाना टेस्ट करना होता है

मिड-डे मील में शाला प्रभारी की जिम्मेदारी यह रहती है कि वह यह देखे की खाना स्कूल परिसर में ही बना हो। इसके साथ ही खाना तैयार होने के बाद उसे खुद टेस्ट करना होता है। अगर उसे लगता है कि खाना बच्चों को देने लायक नहीं है, तो वह उसे रिजेक्ट कर सकता है।

65% बच्चों के अनुसार बजट दिया जाता है

सक्सेना ने बताया कि यह माना जाता है कि सभी बच्चे स्कूल नहीं आते हैं। ऐसे में स्कूल में बच्चों की उपस्थिति को देखते हुए अधिकतम 65% बच्चों की संख्या निर्धारित की गई है। यानी स्कूल में 100 बच्चे हैं, तो 65% बच्चों का ही बजट दिया जाएगा।

यहां भी ध्यान नहीं

34 हजार स्कूलों में हाथ धोने के लिए हैंड वॉशिंग यूनिट नहीं

कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए हाथों को साफ रखने की सलाह दी जाती है। लेकिन, मध्यप्रदेश के 20 हजार सरकारी स्कूलों में हैंड वाशिंग यूनिट नहीं बने हैं। 34 हजार में हैंड वाशिंग यूनिट की व्यवस्था ही नहीं है। 1500 में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। डेढ़ हजार स्कूलों में क्लासरूम नहीं हैं, तो 22 हजार में क्लासरूम कम जर्जर और 19 हजार में ज्यादा मरम्मत की जरूरत है।

चाइल्ड बजट पेश करने वाला पहला राज्य

मध्यप्रदेश चाइल्ड बजट पेश करने वाला देश में पहला राज्य है। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने 2022-23 का बजट पेश करते हुए कहा था- बच्चों के शैक्षणिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक विकास पर ध्यान देना जरूरी है, इसलिए पहली बार चाइल्ड बजट लाया जा रहा है। इसके जरिए बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण जैसी व्यवस्थाएं सुनिश्चित हो सकेंगी। अभी तक 17 विभागों में बच्चों के लिए चल रही योजनाओं को चिह्नित किया गया है। इनमें चलने वाली योजनाओं को पहली बार एक साथ लिया गया है। सरकार ने बजट में इसके लिए 57 हजार 800 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

फैक्ट…

  • 10% बजट शिक्षा का है प्रदेश के कुल बजट में।
  • 27,792 करोड़ रुपए का बजट रखा है साल 2022-23 में स्कूलों के लिए।
  • 10,500 करोड़ का बजट है प्राइमरी स्कूलों की स्थापना के लिए।

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